सतत विकास पर निबंध Sustainable Development essay in Hindi language: वह विकास का क्रम ही था जो मानव को जंगलों से बस्तियों तक ले आया.
आज भी उतरोतर गति हासिल करता जा रहा हैं. ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की जरूरत को तो पूरा करे ही साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए कोई समझौता न करे उसे सतत या धारणीय विकास कहा जाता हैं.
आज का निबंध सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर दिया गया हैं.
सतत विकास पर निबंध Sustainable Development essay in Hindi
नियोजित रूप से सतत विकास पर वर्ष 2015 में युएनओ की महासभा की 70 वीं बैठक में आगामी 15 वर्षों के लिए सतत विकास के लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारित किये गये. इसे एजेंडा 2030 का नाम दिया गया.
इस आयोजन में सतत विकास लक्ष्य के रूप में 17 गोल और 169 टारगेट चिन्हित किये गये, जिन्हें 2015-2030 की अवधि के मध्य पूरा किया जाना हैं. इन 17 लक्ष्यों में गरीबी का पूर्ण उन्मूलन, शिक्षा सेहत और पर्यावरण से जुड़े विषय शामिल हैं.
विश्व के सभी देशों में आज सतत विकास में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई हैं. और इसके लिए औद्योगिकीकरण से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तक के हर सभव प्रयास किये जा रहे हैं.
सतत विकास की इस होड़ में हम यह भूल गये है कि हम इसे किस मूल्य पर हासिल करना चाहते है, इसमें दो राय नहीं है कि विकास के लिए हम पुर्णतः प्रकृति पर आश्रित हैं. क्योंकि इसके लिए आवश्यक तेल और कोयला हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है.
हमारे सभी प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर सिमित मात्रा से लेकर कोयला एवं जल भी हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है. और ये सभी प्राकृतिक संसाधन बेहद सिमित मात्रा में हैं.
जिस तेजी से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है. उसमें यह अनुमान लगाया जा रहा है. कि वर्ष 2030 तक यह बढ़कर ८ अरब से अधिक हो जाएगी.
और जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है, उसका परिणाम यह होगा कि आने वाली मानव पीढ़ियों के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी से उपलब्ध ही नहीं होगे.
अर्थशास्त्रियों, पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल यह बताया कि हम अपने विकास के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का भी ख्याल रखे,
कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये संसाधन बचें रहे. भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों का बचाव के मध्यनजर ही सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की अवधारणा का विकास हुआ.
दरअसल सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता हैं.
कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो. यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरंतर चलता जा रहता हैं. सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे.
सतत विकास की आवश्यकता निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाती हैं.
- औद्योगिकीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है. फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवर्तन हुआ है. साथ ही समुद्र का जल स्तर उठ जाने के कारण आने वाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जल मग्न हो जाने की आशंका है.
- जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण में भी निरंतर वृद्धि हो रही है, यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यंत भयंकर होंगे.
- एनवायरमेंटल डाटा सर्विसेज की मई 2008 की रिपोर्ट के अनुसार, लोगों एवं राष्ट्रों की सुरक्षा भोजन, ऊर्जा, पानी एवं जलवायु इन चार स्तम्भों पर निर्भर है. चारों एक दूसरें से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है और ये सभी खतरे की सीमा पार करने की कगार पर है.
- अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है, कि पृथ्वी के जीवन को पोषित करने की क्षमता तेजी से कम हो रही है.
- 2030 तक विश्व की जनसंख्या के 8.3 अरब से अधिक हो जाने का अनुमान है, जिसके कारण उस समय भोजन एवं ऊर्जा की मांग 50 प्रतिशत अधिक तथा स्वच्छ जल की मांग 30 प्रतिशत अधिक हो जाएगी. भोजन, ऊर्जा एवं जल की इस बढ़ी हुई मांग के फलस्वरूप उत्पन्न संकट के दुष्परिणाम भयंकर हो सकते हैं.
विश्व में आई औद्योगिक क्रांति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू ही गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी में अपनी चरम सीमा को पार गया, दुष्परिणामस्वरूप विश्व की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया है कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया हैं.
इसलिए बीसवीं शताब्दी में संयुक्तराष्ट्र एवं अन्य वैश्विक संगठनों ने पर्यावरण की सुरक्षा पर बल देना शुरू कर दिया. फिर तो ओजोन परत के संरक्षण के लिए वर्ष 1985 में वियना सम्मेलन हुआ एवं इसकी नीतियों को विश्व के अधिकतर देशों ने वर्ष 1988 में लागू किया गया.
वियना समझौते के परिणामस्वरूप वर्ष 1987 में ओजोन परत में छेद करने वाले पदार्थ पर मांट्रियल समझौता हुआ.
इसके बाद इस विषय से समझौते एवं सम्मेलन विश्व के कई अन्य शहरों में किये गये. 1997 में जापान के क्योटो प्रोटोकॉल में तय किया गया कि विकसित देश पृथ्वी के बढ़ते तापमान से दुनिया को बचाने के लिए अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाएगे. दिसम्बर 2009 में सम्पन्न कोपेनहेगन सम्मेलन का उद्देश्य भी पर्यावरण सुरक्षा था.
Sustainable Development Goal And India – सतत विकास और भारत
भारत में सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं बहुपक्षीय पर्यावरणीय करारों के लिए भारत सरकार के केन्द्रीय अभिकरण की भूमिका पर्यावरण एवं वन मंत्रालय निभाता हैं
इसने जलवायु परिवर्तन एवं ओजोत परत संरक्षण से लेकर सतत विकास से सम्बन्धित विश्वभर में आयोजित कई सम्मेलनों एवं समझौतों में अपनी सक्रिय भूमिका एवं भागीदारी निभाई हैं.