बावजी चतुर सिंह जी का जीवन परिचय | Bavji Chatur Singh Ka Jivan Parichay
Jivan Parichay, Jivani, Biography, History Of Bavji Chatur Singh In Hindi-राजस्थान के कर्मशील मनुष्यों के साथ ही वितरानी भक्तो का भी प्रमुख स्थान हैं. ऐसे ही एक महात्मा बावजी चतुर सिंह थे. इनका जन्म विक्रम संवत सन 1936 माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुआ था. योगीवर्य महाराज चतुरसिंह जी मेवाड़ की भक्ति परम्परा के एक परमहंस व्यक्तित्व थे. इस संत ने लोकवाणी मेवाड़ी के माध्यम से अपने अद्भुत विचारों को साहित्य द्वारा जन-जन के लिए सुलभ बनाकर मानव के लिए बहुत सेवा की.
बावजी चतुर सिंह जी
- पूरा नाम-बावजी चतुर सिंह
- जन्म-09 फरवरी 1880
- जन्म स्थान-कर्जली, उदयपुर
- रचनाएँ-चतुर चिंतामणी
- माता-पिता-सूरत सिंह,रानी कृष्ण कँवर
- जाति-राजपूत
मेवाड़ राजपरिवार से सम्बन्धित चतुरसिंह की वाणी दिव्य थी. क्युकि वे दिव्यता के पोषण थे. उनका चिन्तन उदात था. क्युकि वे अनुपम सौदर्य के उपासक थे, उनका सम्बोधन आत्मीय था. वे आत्मरूप थे. इन्होने कुल 18 छोटे बड़े ग्रंथो की रचना की. मेवाड़ी बोली में लिखी गईं. गीता पर गंगा-जलि उनकी प्रसिद्ध पुस्तक हैं.
बावजी चतुर सिंह के दोहो
हमने अपने पिछले लेख में कविवर बावजी के हिंदी मेवाड़ी और ब्रज समिश्रण के दोहे अर्थ सहित दिए हैं, जिन्हें आप सम्बन्धित पोस्ट में दी गई लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं.
चतुर सिंह की दोहावली का संग्रह चतुर चिंतामणी नामक रचना हैं,
सामान्य लोक जीवन पर आधारित इन दोहों में इंसान संसार और ईश्वर के बिच के सम्बन्ध को दार्शनिक तरीके से समझने में मदद मिल सकती हैं. लोक व्यवहार के दोहों में चतुर सिंह जी ने वर्तमान और प्राचीन समय के उदाहरनो का प्रयोग अच्छी तरह किया हैं.