हथकरघा उद्योग क्या है | Information About Handloom Meaning In Hindi

हथकरघा उद्योग क्या है Information About Handloom Meaning In Hindi : भारत में वस्त्र बनाने की दीर्घ एवं सुद्रढ़ परम्परा रही है. भारत में कई सदियों से वस्त्र निर्माण का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है.

कपड़ों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्रियों व तकनीक का प्रयोग किया जाता है. भारतीय कपड़ा उद्योग क्षेत्र में हथकरघा एवं पावरलूम इस क्षेत्र का मुख्य आधार रहे है. इनकें द्वारा कपड़ो की बुनाई की जाती है.

Handloom Meaning In Hindi हथकरघा मीनिंग

हथकरघा उद्योग क्या है

Meaning Of Handloom In Hindi: कपड़े की बुनाई में दो प्रकार के धागों की प्रक्रिया चलती है. एक लम्बत व एक क्षैतिज . इन्हें क्रमश ताना व बाना कहा जाता है. लम्बवत दिशा में प्रयुक्त किये जाने वाले धागों को ताना और क्षैतिज दिशा में बुने जाने वाले धागे को बाना कहा जाता है.

भारत में हथकरघा उद्योग सबसे बड़ा कपड़ा उद्योग क्षेत्र रहा है. भारत के कुल वस्त्र उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत कपड़ा इन्ही हथकरघा उद्योगों द्वारा तैयार किया जाता है.

आजादी के पहले एवं बाद में इस उद्योग के विकास पर सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिया गया है. 1940 में पहली बार भारत ने व्यवस्थित रूप से हथकरघा उद्योग पर विशेष रूप से ध्यान दिया, इसके दो मुख्य कारण थे.

कुटीर उद्योगों के कारीगरों को आर्थिक सुरक्षा व इस व्यवसाय में स्थायित्व देना. उस समय तक भारत में विदेशी आय का मुख्य स्रोत कपड़ा व्यापार ही था. इस कारण विदेशीं मुद्रा के लिए हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा दिया गया.

भारत में हथकरघा उद्योग का इतिहास व विकास (History and development of handloom industry in India)

आजादी के बाद भारत सरकार ने पृथक रूप से अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, हस्तशिल्प बोर्ड एवं खादी ग्रामोद्योग कमिशन की स्थापना की गई थी. भारत सरकार की पंचवर्षीय नीतियों के जरिये भी हथकरघा के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया.

1980, 81 एवं 1985 की भारतीय वस्त्र नीति में भी हथकरघा उद्योग क्षेत्र को विशेष रूप से महत्व दिया गया. इसी दिशा में इंडियन पार्लियामेंट द्वारा वर्ष 1985 में भारतीय हथकरघा अधिनियम (एक्ट) पारित किया गया.

आज के परिद्रश्य में हैडलूम भारत की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा रहा है. देश के तकरीबन 70 लाख कर्मिकों व कारीगरों को इस क्षेत्र से प्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हो रहा है.

सरकार द्वारा वर्ष 2005 से इन बुनकरों के स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं के लिए नईं बुनकर स्वास्थ्य बीमा स्कीम लौंच की गई. इस स्कीम के तहत किसी भी बुनकर जो इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ है. उसकी पुरानी व नवीन बिमारी का इलाज इस योजना के द्वारा सरकार करवाएगी.

योजनाओं की सूची में दूसरा अहम कदम महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना स्कीम था. जो वर्ष 2005 में ही शुरू की गई थी. साथ ही वर्ष 2006 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा हथकरघा उत्पादों को विशेष पहचान दिलाने के लिए हैंडलूम मार्क की शुरुआत की गई थी.

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

देश में छोटे एवं कुटीर उद्योगों के अंतर्गत सबसे अधिक रोजगार देने वाला हथकरघा उद्योग हैं. आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को पूरा करने में इस उद्यम का सर्वाधिक योगदान रहने वाला हैं.

हेंडलूम के सिद्धहस्त बुनकरों को सम्मानित करने तथा राष्ट्रीय स्तर पर इस उद्योग के प्रति चेतना जाग्रत करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता हैं.

इस दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी. इसके इतिहास में गांधीजी के 7 अगस्त 1905 के स्वदेशी आन्दोलन के शुरुआत की घटना को जोडकर देखा गया हैं.

उद्योग ने न केवल भारतीय बुनकरों को रोजगार व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई हैं बल्कि महिला सशक्तिकरण में भी बड़ी भूमिका निभाई हैं.

हथकरघा क्षेत्र में काम करने वाले कुल श्रमिकों में 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं. वर्ष 2020 में की गई चौथी अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना के अनुसार 35.22 लाख नागरिक इस उद्यम से जुड़े है जिनमें 9 लाख पुरुष व 25 लाख महिलाएं हैं.

हथकरघा योजनायें

बुनकर मित्र

केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई बुनकर मित्र स्कीम के जरिये इस हथकरघा उद्यम के प्रति आकर्षित युवा हेल्पलाइन के जरिये व्यवसाय से सम्बन्धित मार्गदर्शन और पूछताछ कर सकते हैं.

1800-208-9988 इन नम्बर पर कॉल करके सुबह दस बजे से शाम छः बजे तक सात भारतीय भाषाओं में मदद ली जा सकती हैं.

यार्न आपूर्ति योजना

देश के करीब 50 लाख लोगों के रोजी रोटी से जुड़े इस उद्यम में व्यापारियों के माल स्टॉक, कीमतों के निर्धारण और बाजार को प्रभावित किये जाने की स्थिति में भारत सरकार ने इसे विनियमित करते हुए साल 1983 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम चलाया जिसके तहत राष्ट्रीय हथकरघा निगम की स्थापना की.

यह संस्था देश के बुनकरों को एक व्यवस्थित सप्लाई चेन के माध्यम से अपेक्षित गुणवत्ता का धागा और व्यवसाय से जुडी अन्य सुविधाएं मुहैया करवाती हैं. 1992 में केंद्र सरकार ने आपूर्ति में व्यय खर्च का भार भी वहन करने का निश्चय किया था.

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