रानी कर्णावती जीवनी व इतिहास | Rani Karnavati History In Hindi

Rani Karnavati History In Hindi | रानी कर्णावती जीवनी व इतिहास : कर्मवती मेवाड़ के महाराणा सांगा की पत्नी थी.

गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मेवाड़ आक्रमण (1533 व 1535 ई) के समय इसका पुत्र विक्रमादित्य मेवाड़ का महाराणा था.

बहादुरशाह के आक्रमण से मेवाड़ की रक्षा के लिए कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजी थी. 

रानी कर्णावती जीवनी व इतिहास | Rani Karnavati History In Hindi

रानी कर्णावती जीवनी व इतिहास | Rani Karnavati History In Hindi

मगर समय पर निर्णय न ले सकने के कारण हुमायूँ मेवाड़ की रक्षार्थ नहीं आ सका. अतः चित्तोड़ की पराजय को निकट जान रानी कर्मवती ने 1535 में अनेक स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया. यह घटना चित्तौड के दूसरे साके के नाम से विख्यात हैं.

पूरा नामरानी कर्णावती
जन्मतिथि अज्ञात
मृत्यु8 मार्च, 1535 ई.
पति/पत्नीराणा साँगा
संतानराणा उदयसिंह और राणा विक्रमादित्य
कर्म भूमिमेवाड़
प्रसिद्धिमेवाड़ की रानी
नागरिकताभारतीय

कौन थी कर्णावती (rani karnavati in hindi wikipedia)

जब भारत में मुगलों का आगमन हुआ था, उनका पहला सामना मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह यानी राणा सांगा से हुआ था. 1526 ई में बाबर और राणा सांगा के मध्य खानवा का युद्ध लड़ा गया. इस युद्ध में बाबर को विजय मिली तथा उसने भारत में मुगल साम्राज्य की नीव रख दी.

उधर इस युद्ध से राणा सांगा का शरीर क्षत विक्षत हो गया था, सैकड़ों घाव उसे उनका शरीर भर गया था. इसके चलते थोड़े दिनों बाद ही राणा सांगा का देहांत हो गया था.

अब मेवाड़ की सत्ता सांगा के पुत्र विक्रमादित्य के हाथों में आ गई. स्वयं रानी कर्मवती अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य का राजकाज में सहयोग किया करती थी.

रानी कर्णावती तथा विक्रमादित्य के शासन को कमजोर समझकर गुजरात के शासक बहादुर शाह ने मेवाड़ पर दूसरा हमला कर दिया था.

रानी ने राजपूत राजाओं से भी इस युद्ध में मदद की गुहार लगाई थी. वही उसने दिल्ली के मुगल शासक हुमायूँ को अपना मानकर रक्षा की खातिर राखी का धागा भेजा था.

रानी ने अपने एक सेनापति को राखी व संदेश देकर दिल्ली भेजा, उस समय हुमायूँ अपनी फौज सहित ग्वालियर में रूका हुआ था,

इस कारण उस तक यह संदेश पहुचने में काफी देर हो चुकी थी, समय पर सहायता न मिल पाने के कारण चित्तौड की सेना परास्त हो चुकी थी.

रानी ने राजपूती परम्परा को निभाते हुए सभी स्त्रियों के साथ जौहर कर दिया. जब हुमायूँ को कर्मवती की राखी मिली तो उसने दिल्ली व आगरा से फौज मंगवाई , मगर तब तक बहुत देरी हो चुकी थी. जब हुमायूँ मेवाड़ पंहुचा तो रानी ने जौहर कर दिया था.

हुमायूं को राखी

चित्तौड के शासक विक्रमादित्य की स्थिति कमजोर समझते हुए गुजरात के सुलतान बहादुरशाह ने आक्रमण करने का निश्चय किया. ऐसे में रानी कर्णावती ने इस बला से निपटने के लिए सेठ पद्मशाह के हाथों मुगल शासक हुमायूं को राखी भिजवाई.

राखी के साथ दिए संदेश में लिखा था मैं आपको अपना भाई मानकर चित्तौड की सहायतार्थ यह राखी भेज रही हूँ. उस समय हुमायूं का कारवाँ ग्वालियर में ठहरा था उन तक रानी कर्णावती का संदेश देरी से पंहुचा, तब तक बहादुर शाह ने चित्तौड़ फतह हासिल कर ली.

कहते है जब हुमायूं को यह संदेश मिला तो उसने दिल्ली समाचार भिजवाकर सेनाओं को तैयारी का हुक्म दे दिया व फौज लेकर हुमायूं चित्तौड पंहुचा तो बहुत देर हो चुकी थी कर्णावती महल की अन्य महिलाओं के साथ जौहर कर चुकी थी.

हुमायूँ ने नहीं की थी रानी कर्णावती की मदद

हिन्दू मुस्लिम के सौहार्द और रक्षाबंधन की कहानियों में हमने कर्णावती द्वारा हुमायूं को भेजी राखी की कहानी को कई बार सुना हैं. मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि महज कपोल कल्पित प्रसंग से बढ़कर कुछ नहीं हैं.

दरअसल 19 वीं सदी के अंग्रेज इतिहास कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान में इस कहानी का पहली बार जिक्र किया था.

कहानी का दूसरा पहलू यह भी है कि कर्णावती के पति राणा सांगा खानवा के युद्ध में बाबर से लड़ते हुए घायल हो गये तथा बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी.

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