आर्थिक न्याय का अर्थ क्या है – What Is Economic Justice In Hindi: किसी भी समाज में पूर्ण रूप से आर्थिक न्याय व आर्थिक समानता की स्थापना करना संभव नहीं हैं.
आर्थिक न्याय का अर्थ आर्थिक असमानता को समाप्त करना नहीं बल्कि कम करना हैं. आर्थिक न्याय का मूल लक्ष्य आर्थिक असमानता को कम करना हैं. आज हम आर्थिक न्याय की अवधारणा अर्थ परिभाषा व प्रकार जानेगे.
आर्थिक न्याय का अर्थ क्या है – What Is Economic Justice In Hindi
समाज में व्यक्ति व्यक्ति की आय व सम्पति में इतनी विषमता नहीं होनी चाहिए. कि जिससे सामाजिक विषमता उत्पन्न हो जाए. ऐतिहासिक रूप से सामाजिक अन्याय व आर्थिक अन्याय के तत्व हर युग व हर क्षेत्र में विद्यमान रहे हैं. मार्क्सवादी राजनीतिक चिंतक ने तो इतिहास की व्याख्या ही आर्थिक भौतिकवाद के सिद्धांत के आधार पर करते हुए लिखा हैं.
हर युग में आर्थिक स्थिति के कारण समाज में दो वर्ग पाये जाते हैं. जिनमें से एक अमीरों को प्रतिनिधित्व करता हैं. वहीँ दूसरा गरीबों व शोषितों का. उसने यह भी कहा हैं कि अमीर आम तौर पर गरीबों का शोषण करते हैं.
इस रूप में समाज में दो वर्ग शोषक व शोषित होने के कारण बिना एक वर्ग की समाप्ति के समाज में आर्थिक न्याय की स्थापना ही नहीं की जा सकती.
विश्व के अन्य देशों की भांति भारत में भी लोगों की आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं हैं. और इसलिए आर्थिक न्याय की स्थापना भारतीय शासन का महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं.
भारत के विभिन्न राज्यों में बढ़ती हुई आर्थिक विषमता के कारण ही नक्सलवाद, भ्रष्टाचार राजनीति के अपराधीकरण, तस्करी व आतंकवाद जैसी दुप्रव्रत्तियों विकसित हुई हैं,
जो भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं. सामाजिक व राजनीतिक न्याय के लिए आर्थिक न्याय अनिवार्य शर्त हैं.
आर्थिक न्याय का अर्थ (Meaning Of Economic Justice)
आर्थिक न्याय से तात्पर्य यह है धन व सम्पति के आधार पर व्यक्ति व्यक्ति के मध्य विभेद की दीवार खड़ी नहीं होनी चाहिए. साधारण शब्दों में आर्थिक न्याय का अर्थ आर्थिक क्षेत्र में न्याय.
मानव समाज में धन और सम्पति का सदैव महत्वपूर्ण स्थान रहा है. धन व सम्पति समाज में उच्च दर्जा पाने व शक्ति प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं.
प्रत्येक व्यक्ति धन और सम्पति बढाने की चेष्टा करता हैं. यदि किसी राज्य या समाज में आर्थिक शक्ति व स्रोतों का न्यायपूर्ण वितरण नहीं होता हैं तो उसे आर्थिक अन्याय या आर्थिक असमानता की संज्ञा दी जाती हैं.
प्रत्येक समाज व राज्य में आर्थिक संसाधनो व धन संपदा का न्यायपूर्ण वितरण ही आर्थिक न्याय हैं. जिससे समाज का प्रत्येक व्यक्ति गरिमामय जीवन जी सके.
दूसरे शब्दों में आर्थिक न्याय से अभिप्रायः है कि समाज में सभी व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी होना. कोई इतना गरीब या आर्थिक रूप से दुर्बल न हो जाए कि वह अपना अस्तित्व या गरिमा खो दे.
पं नेहरु के शब्दों में भूख से मर रहे व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ एवं महत्व नहीं हैं. डॉ राधाकृष्णन ने कहा है कि जो लोग गरीबी की ठोकरे खाकर इधर उधर भटक रहे हैं जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती हैं. और जो भूख से मर रहे हैं. वे संविधान या उसकी विधि पर गर्व नहीं कर सकते.
अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैकलिन डी रूजवेल्ट ने भी कहा है कि आर्थिक सुरक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता के बिना कोई भी व्यक्ति सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता हैं.
भारतीय संविधान में आर्थिक न्याय क्या है (What Is Economic Justice & Indian Constitution)
भारत में आर्थिक न्याय की संकल्पना को व्यवहार रूप में सफल बनाने के लिए संविधान में कई प्रावधान किये गये हैं. अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों के सम्बन्ध में समाज के सभी व्यक्तियों को समान अवसर उपलब्ध करवाए जाएगे.
संविधान के अनुच्छेद 19 (1) 6 में प्रावधान है कि सभी नागरिकों को कोई भी वृति व्यापार या आजीविका प्राप्त करने का अधिकार होगा.
राज्य की नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत भी आर्थिक न्याय के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं, अनुच्छेद 39 सबसे उल्लेखनीय उपलब्ध हैं. जिसमें निर्धारित किया गया हैं कि
राज्य अपनी नीति की विशेषतया ऐसा संचालन करेगा निश्चय ही.
- समान रूप से महिला व पुरुष सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो.
- समुदाय की भौतिक सम्पति का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो कि जिससे सामूहिक हित सर्वोत्तम रूप से साधन हो.
- आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार संचालित हो कि धन और उत्पादन साधनों व संसाधनों का केन्द्रीकरण हो.
- पुरुष और महिलाओं दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन मिलता हो.
- श्रमिक पुरुष और महिलाओं के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगार में जाने के लिए विवश न होना पड़े जो उनकी आयु तथा शक्ति के अनुकूल हो.
भारत की विविध पंचवर्षीय योजनाओं आर्थिक न्याय की स्थापना की प्रबल चेष्टाएं रही हैं. समाजवादी ढंग का समाज का लोककल्याणकारी राज्य और मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसे शब्दों से व्यक्त होता हैं कि भारतीय राज्य आर्थिक क्षेत्र में ऐसी नीतियों को अनुसरण करेगा जो आर्थिक न्याय की स्थापना में सार्थक हो. राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मध्य मार्ग को अपनाने से ही आर्थिक विषमता को कम किया जा सकता हैं.
भारत के संविधान के भाग 4 में वर्णित अन्य अनुच्छेदों का उद्देश्य भी न्याय से अनुप्रमाणित एक नई सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था सुनिश्चित करना हैं.
अनुच्छेद 39 समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता की प्रावधान करते है ताकि जो गरीब है या किसी कारण से मुकदमें के दौरान अपना पक्ष न्यायालय में रख सकते हैं.
उनके लिए सरकार का कर्तव्य है कि उन्हें सरकारी खर्चे पर वकील उपलब्ध कराए. अनुच्छेद 39 (क) तथा 39 (ख) के प्रावधान भी उल्लेखनीय रूप से आर्थिक न्याय से सम्बद्ध हैं.
वे दोनों अनुच्छेद इस रूप में भी महत्वपूर्ण हैं. कि इनकी प्राप्ति के लिए मौलिक अधिकारों में भी कटौती की जा सकती हैं. आर्थिक न्याय की स्थापना के उद्देश्य से ही भारत में जमीदारी प्रथा व देशी राजाओं के प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया था.
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