Jalore Fort History In Hindi: jalore kila राजस्थान के दक्षिणी पश्चिमी भाग में स्थित जालौर के किले को मारवाड़ राज्य का गढ़ माना जाता था. पूर्ण रूप से हिन्दू शैली में निर्मित इस किले का निर्माण आठवी सदी में गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया था. सूकड़ी नदी के तट पर बना यह एक गिरी दुर्ग हैं, किले का द्वार बेहद सुरक्षित था. जिन्हें कई बार आक्रमणकारी खोल नहीं पाए थे. यहाँ पर परमार, चौहान एवं खिलजी शासकों का शासन रहा. चलिए आज हम जालौर किले के बारे में जानकारी प्राप्त करते है तथा इसके रहस्य व इतिहास को जानते हैं.
जालौर के किले का इतिहास | Jalore Fort History In Hindi
जबालिपुर या जालहुर सूकडी नदी के किनारे बना यह किला राज्य के सुद्रढ़ किलों में से एक माना जाता हैं. इस किले को सोहनगढ एवं सवर्णगिरी कनकाचल के नाम से भी जाना जाता हैं. 8 वीं शताब्दी में प्रतिहार क्षत्रिय वंश के सम्राट नागभट्ट प्रथम ने इस किले का निर्माण करवाकर जालौर को अपनी राजधानी बनाया था.
जालौर के किले को अभी तक कोई आक्रान्ता इसके मजबूत द्वार को खोल नहीं पाया था. जब प्रतिहार शासक जालौर से चले गये तो इसके बाद कई वंशों ने यहाँ अपना राज्य जमाया. इस दुर्ग को मारू के नौ किलों में से एक माना जाता हैं. इस किले के सम्बन्ध में एक लोकप्रिय कहावत है आकाश को फट जाने दो, पृथ्वी उलटी हो जाएगी, लोहे के कवच को टुकड़ों में काट दिया जाएगा, शरीर को अकेले लड़ना होगा, लेकिन जालोर आत्मसमर्पण नहीं करेगा.
जालौर की पहाड़ी पर बना यह किला 336 मीटर (1200 फीट) ऊँचे पथरीले शहर से दीवार और गढ़ों के साथ गढ़वाली तोपों से सुसज्जित हैं. किले में चार विशाल द्वार हैं, हालांकि यह केवल एक तरफ से दो मील (3 किमी) लंबी सर्पिल चढ़ाई के बाद ही पहुंच योग्य है। किले का दृष्टिकोण उत्तर से ऊपर की ओर है, दुर्ग की तीन पंक्तियों के माध्यम से एक खड़ी प्राचीर दीवार 6.1 मी (20 फीट) ऊंची है। ऊपर चढ़ने में एक घंटा लगता है। किला पारंपरिक हिंदू वास्तुकला की तर्ज पर बनाया गया है ।
सामने की दीवार में बने चार शक्तिशाली द्वार या पोल हैं जो किले में जाते हैं: सूरज पोल, ध्रुव पोल, चांद पोल और सीर पोल। सूरज पोल या “सूर्य द्वार” इस प्रकार बनाया गया है कि सुबह की सूर्य की पहली किरणें इस प्रवेश द्वार से प्रवेश करती हैं। यह एक प्रभावशाली गेट है जिसके ऊपर एक छोटा वॉच टॉवर है। ध्रुव पोल, सूरज पोल की तुलना में सरल है।
किले के अंदर स्थित महल या “आवासीय महल” अब उजाड़ दिया गया है, और जो कुछ बचा हुआ है, उसके चारों ओर विशाल रॉक संरचनाओं के साथ खंडहर सममित दीवारें हैं। किले के कट-पत्थर की दीवारें अभी भी कई स्थानों पर बरकरार हैं। किले में कुछ पीने के पानी के टैंक हैं।
किले के भीतर किला मस्जिद किला मस्जिद (किला मस्जिद) भी उल्लेखनीय है, क्योंकि वे काल की गुजराती शैलियों (यानी 16 वीं शताब्दी के अंत) से जुड़ी वास्तुकला की सजावट के व्यापक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं । किले में एक और मंदिर संत रहमद अली बाबा का है। मुख्य द्वार के पास एक प्रसिद्ध मोहम्मडन संत मलिक शाह का मकबरा है । जैन मंदिर जालोर जैनियों का तीर्थस्थल भी है और यहां आदिनाथ , महावीर , पार्श्वनाथ और शांतिनाथ के प्रसिद्ध जैन मंदिर स्थित हैं.
जालौर किले का इतिहास Jalore Fort History जालोर फोर्ट का इतिहास
पश्चिमी राजस्थान में अरावली पर्वत श्रंखला की सोनगिरि पहाड़ी पर सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे गिरि दुर्ग जालौर में निर्मित हैं. सोनगिरि पहाड़ी पर निर्मित होने के कारण किले को सोनगढ़ कहा जाता हैं. प्राचीन शिलालेखों में जालौर का प्राचीन नाम जाबलिपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता हैं.
डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा परमारों को जबकि डॉ दशरथ शर्मा प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम को इस किले का निर्माता मानते हैं. यह किला ८०० गज लम्बा और ४०० गज चौड़ा हैं. आसपास की भूमि से यह १२०० फीट ऊँचा हैं. मैदानी भाग में इसकी प्राचीर सात मीटर ऊँची हैं. सूरजपोल किले का प्रथम प्रवेश द्वार हैं. इसके पार्श्व में एक विशाल बुर्ज हैं जो प्रवेशद्वार की सुरक्षा में काम आती थी.
जालौर के किले पर परमार, चौहान, सोलंकियों, मुस्लिम सुल्तानों और राठौड़ों का आधिपत्य रहा. कीर्तिपाल चौहान के वंशज के नाम पर सोनगरा चौहान कहलाए. जालौर का प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव था जिसे अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना करना पड़ा.
छल कपट से खिलजी ने इस किले पर अधिकार कर लिया. तब जालौर का प्रथम साका हुआ. मालदेव ने मुस्लिम आधिपत्य समाप्त कर इस पर राठौड़ों का आधिपत्य स्थापित किया. इस किले की अजेयता के बारे में ताज उल मासिर में हसन निजामी ने लिखा यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका.
जालौर के किले में महाराजा मानसिंह के महल और झरोखे, दो मंजिला रानी महल, प्राचीन जैन मन्दिर, चामुंडा माता और जोगमाया मन्दिर, संत मालिकशाह की दरगाह, परमारकालीन कीर्ति स्तम्भ आदि प्रमुख हैं. अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर का नाम जलालाबाद कर दिया और यहाँ अलाई मस्जिद का निर्माण करवाया.
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