Siwana Fort History In Hindi | सिवाणा के किले का इतिहास

Siwana Fort History In Hindi : पर्वतीय दुर्ग सिवाणा बाड़मेर जिले में अवस्थित हैं. Siwana Fort का निर्माण दसवीं शताब्दी में वीरनारायण पंवार ने करवाया था. तदन्तर इस पर जालौर के सोनगरा चौहानों का अधिकार रहा.

1305 ई में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा पर आक्रमण किया. किलेदार शीतलदेव ने अप्रितम वीरता दिखलाई, मगर भायला पंवार नामक सरदार के विश्वासघात के कारण यह खिलजी के आधिपत्य में चला गया. अलाउद्दीन ने सिवाणा किले का नाम खैराबाद रख दिया.

Siwana Fort History In Hindi | सिवाणा के किले का इतिहास

Siwana Fort History In Hindi सिवाणा के किले का इतिहास

सुमेल युद्ध के बाद मालदेव अपने संकटकाल में उसके पुत्र चन्द्रसेन ने यहीं से मुगलों का प्रतिरोध किया. अकबर के शासन काल में कल्ला राठौड़ यहाँ का दुर्ग पति था.

अकबर ने जब जोधपुर शासक उदयसिंह को सिवाणा पर अधिकार करने का आदेश दिया तब कल्ला राठौड़ ने  युद्ध में अप्रितम वीरता दिखलाई. मगर वीरगति को प्राप्त हुआ.

तब किले की महिलाओं ने जौहर किया. जो सिवाणा का दूसरा साका कहलाता हैं. सिवाणा को मारवाड़ की संकटकालीन राजधानी कहा जाता हैं. 

बाड़मेर से 151 किमी की दूरी पर स्थित यह बाड़मेर की एक तहसील एवं विधानसभा क्षेत्र हैं. गढ़ सिवाना यहाँ का पर्यटक स्थल हैं. यहाँ से नजदीकी शहर बालोतरा है जो सिवाणा से 35 किमी की दूरी पर स्थित हैं.

Siwana Fort History In Hindi | सिवाणा के किले का इतिहास

वर्तमान में खंडहर की अवस्था में पहुच चूका सिवाणा का किला पहाड़ी पर स्थित हैं. खिलजी के आक्रमण में राठौड़ों की वीरता को देखकर दिल्ली के किसी सम्राट ने इसके बाद यहाँ आक्रमण नहीं किया.

इस कारण यह दुर्ग अजेय माना जाता हैं. यदि आप बाड़मेर की तरफ यात्रा को आ रहे है तो मन में यह निश्चय मत कर आइये कि ये रेतीला प्रदेश जहाँ दूर दूर तक पानी नहीं है तथा रेत के टीले हैं.

जिले में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल एवं मन्दिर है जो अपने गौरवशाली इतिहास का आज तक बखान कर रहे हैं. जिनमे सिवाणा का किला भी मुख्य रूप से हैं.

भले ही प्रशासन द्वारा इसके रखरखाव का ध्यान न दिए जाने के कारण यह जर्जर अवस्था में पहुच गया हो मगर इसके सुनहरे काल के पन्ने किले के किस्से आज भी ताजा कर देते हैं.

1538 में राव मालदेव सिवाणा के शासक बने तथा इन्होने किले के निर्माण के लिए पर्याप्त प्रयास भी किये. सिवाणा दुर्ग के मजबूत परकोटे का निर्माण मालदेव ने ही करवाया था.

कल्ला राठौड़ ने अद्भुत वीरता दिखाई, भले ही युद्ध जीतने में मालदेव की सेना विफल रही. मगर बिना सिर के लड़ते धड़ को देखकर सम्राट भी घबरा गया था.

कल्ला राठौड़ की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी हाड़ी रानी ने महल की सभी रानियों के साथ जौहर कर लिया था. किले में आज भी कल्ला की दो समाधियाँ है जिनमें एक उनके धड़ की तथा दूसरी उनके सिर की हैं.

किले में एक ऐसा तालाब भी है जिसका पानी आज तक कभी भी खत्म नहीं हो पाया हैं. कई बड़े अकालों के बावजूद तालाब के पानी का ना सुखना अपने आप में एक अनसुलझा रहस्य हैं.

सिवाना के आस पास के पर्यटक स्थल – Places out & around Siwana Fort History

सिवाणा एक ऐसे भूभाग में आता है जो चारो ओर मरुभूमि से घिरा हुआ हैं. वर्षा ऋतू में सिवाणा की छप्पन की पहाड़ियां अपने मनोहारी रूप को धारण कर लेती हैं.

सिवाणा के किले के आस-पास कई दर्शनीय स्थल है जिनमें पहला स्थान हल्देश्वर महादेव का मन्दिर हैं. इस मन्दिर में मारवाड़ के सपूत दुर्गादास का पोल भी बना हुआ हैं.

भीमगोड़ा मंदिर यहाँ का ऐतिहासिक मन्दिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में हुआ था. अज्ञातवास की कुछ अवधि पांडवों ने यही गुजारी थी. बताया जाता है कि बलशाली भीम ने घुटना मारकर पाताल से जल की धारा को यही निकाला था.

इसके अलावा सिवाणा के दर्शनीय स्थलों में आशापुरी माँ का मन्दिर तथा मंछाराम जी महाराज का आश्रम भी हैं. इन्होने कई गौशालाओं का निर्माण करवाया था. नाकोड़ा जी तथा खेड़ का ब्रह्मा मन्दिर यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं. यहाँ राजपुरोहित समाज के गुरु खेताराम जी की भव्य समाधि स्थित हैं.

सिवाना किले का पहला शाका और जोहर

राजस्थान में मौजूद इस किले में टोटल 2 बार साका हुआ और दो बार जोहर हुआ। किले में पहला शाका और जोहर साल 1308 में तब हुआ जब सातल देव और अलाउद्दीन खिलजी के बीच भयंकर युद्ध हुआ।

इस दरमियान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति के पद पर विराजमान कमालुद्दीन के द्वारा राजा सातल देव के सेनापति बावला पवार को किले का लालच दिया गया और बावला पवार ने किले के अंदर मौजूद सभी तालाब को गौ मांस के द्वारा प्रदूषित कर दिया और जब किले की रक्षा करने का दूसरा कोई भी उपाय नहीं बचा।

तब राजा सातल देव और उनके पुत्र सोमेश्वर के नेतृत्व में राजपूत वीरों ने अपने सर पर केसरिया साफा बांधा और राजपूत रानियों ने किले के अंदर ही जोहर कर लिया। इस प्रकार से किले में पहला शाका और जोहर संपूर्ण हुआ।

सिवाना किले का दूसरा शाका और जोहर

किले में 1559 में दूसरा साका और जोहर हुआ था। जोहर की वजह थी राजपूत राजा कला राठौड़ और अकबर के बीच घमासान युद्ध। अकबर की तरफ से उदय सिंह के द्वारा युद्ध का नेतृत्व किया जा रहा था और दूसरी तरफ से वीर कला रायमल के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने केसरिया किया था और हाड़ी रानी के नेतृत्व में किले के अंदर मौजूद राजपूत रानियों ने जोहर की परंपरा निभाई थी।

बता दें कि हाड़ी रानी बूंदी के महाराजा सुरजन हाडा की पुत्री थी। सिवाना किले में वीर कल्ला रायमल का धड़, महाराजा अजीतसिंह का दरवाजा और हल्देश्वर महादेव का बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मौजूद है।

इसके अलावा जिले में भीमगोडा मंदिर, आशापुरी माता का मंदिर, अमृतिया कुआं जैसे भी देखने लायक बहुत ही अच्छे पर्यटन स्थल है।

इस किले में जो परकोटा है उसे शहर पनाह के नाम से जानते हैं। इसका निर्माण राव मालदेव के द्वारा करवाया गया था जो कि मारवाड़ के महाराजा है।

सिवाना किले को देख कर के मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी ने कहा था कि यह किला बहुत ही भयानक जंगल में मौजूद है और किले के अंदर चालाक सातल देव रहता है और उसके साथ कई हजार शातिर सरदार उसकी रक्षा करने के लिए रहते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस किले में शेरे राजस्थान के नाम से प्रसिद्ध लोक गायक जयनारायण व्यास को भी गिरफ्तार करके रखा गया था।

सिवाना किला घूमने का सबसे अच्छा समय

मार्च महीने से लेकर के जून के महीने तक आपको यहां पर जाने से बचना चाहिए। इसके अलावा आप साल भर में कभी भी यहां पर घूमने के लिए जा सकते हैं।

यहां पर भारतीय लोगों के लिए अलग एंट्री फीस होती है और विदेशी लोगों के लिए अलग एंट्री फीस होती है, जिसे भरने पर ही आपको प्रवेश मिलता है।

इसके अलावा अगर आप वीडियोग्राफी करना चाहते हैं तो कैमरा के लिए भी आपको चार्ज देना पड़ता है। आप यहां पर रेलवे, बस या फिर हवाई जहाज के द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं।

क्योंकि यह किला भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। याद रखे कि किले के खुलने का और किले के बंद होने का निश्चित समय है। इसलिए उसी दरमियान किले में घूमने के लिए जाएं।

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