Gagron Fort History -गागरोन किला राजस्थान के झालवाड़ में आता हैं. यह जल दुर्ग हैं. सातवीं सदी में इसका निर्माण आरम्भ हुआ जो 14 वीं सदी में पूर्ण हुआ. कुम्भलगढ़ और चित्तौड़गढ़ की तरह यह भी अभेद्य दुर्ग रहा हैं. साथ ही गागरोन के किले को विश्व धरोहर सूची में भी शामिल किया गया हैं.
राजस्थान में गागरोन किला- Gagron Fort हिन्दू मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल हैं. यहाँ पर हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर भी हैं. तथा एक सूफी संत मीठेशाह की दरगाह भी हैं.
जहाँ रमजान के महीने में बड़ा मेला लगता हैं. 21 जून, 2013 को पांच अन्य दुर्गों के साथ ही गागरोन को भी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया हैं.
यह दुर्ग झालावाड शहर से 13 किलोमीटर की दूरी पर हैं. राजस्थान इतिहास में गागरोन का रहस्य और इतिहास बड़ा रोचक रहा हैं. चलिए गागरौन दुर्ग की हिस्ट्री जानते हैं.
गागरोन किले का इतिहास | Gagron Fort History in Hindi
गागरोन का किला दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में झालावाड़ से 4 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की सुद्रढ़ चट्टान पर कालीसिंध और आहू नदियों के संगम पर स्थित हैं.
तीन तरफ नदियों से घिरा यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता हैं. घने और दुर्गम जंगलों के बीच स्थित यह किला चारो ओर एक खाई से घिरा हुआ नजर आता हैं.
गागरोन पर पहले परमार राजपूतों का अधिकार था, जिन्होंने इस किले का निर्माण करवाया. उनके नाम पर यह किला डोढागढ़ या घुलेरगढ़ कहलाया. चौहान किल कल्पद्रुम के अनुसार देवनसिंह खींची ने बाहरवीं शताब्दी के उतराध में बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया.
और उनका नाम गागरोन रखा. मालवा, गुजरात, मेवाड़ और हाडौती का समीपवर्ती किला होने से गागरोन का सामरिक महत्व था. 1300 ई में खींची शासक जैतसी ने अलाउद्दीन खिलजी के गागरोन पर आक्रमण को विफल कर दिया था.
1423 ई में मांडू के सुल्तान होशंगशाह ने गागरोन पर आक्रमण किया, तब यहाँ का शासक अचलदास खींची वीरगति को प्राप्त हुआ. और महिलाओं ने जौहर किया.
यह गागरोन का प्रथम साका कहलाता हैं. 1437 ई में इस किले पर खींची शासक पाल्हसनी ने पुनः अधिकार कर लिया. 1444 ई में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम ने इस किले को ह्स्ताग्त कर लिया.
तब किले की महिलाओं ने जौहर किया. ये गागरोन का दूसरा साका था. महमूद खिलजी ने इस किले में एक और कोट का निर्माण करवाकर उसका नाम मुस्तफाबाद रखा.
तदन्तर राणा सांगा ने इस किले पर अधिकार कर इसे मेदिनीराय को सौप दिया. 1532 ई में गुजरात के बहादुरशाह, 1542 ई में शेरशाह सूरी एवं 1562 ई में अकबर ने इस किले पर आधिपत्य स्थापित कर लिया. शाहजहाँ ने गागरोन कोटा के राव मुकुंदसिंह को दे दिया. 1948 ई तक यह कोटा राज्य के अंतर्गत ही रहा.
तिहरे परकोटे से सुरक्षित गागरोन के किले में सूरजपोल, भैरवपोल, तथा गणेशपोल, प्रमुख प्रवेश द्वार हैं. गागरोन दुर्ग के स्थापत्य में विशाल जौहर कुंड, राजा अचल दास और उनकी रानियों के महल, नक्कारखाना, बारूदखाना, टकसाल, मधुसुदूँन और शीतला माता के मंदिर, सूफी संत मीठे साहब की दरगाह और औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा प्रमुख हैं.
गागरोन दुर्ग का इतिहास – Gagron Fort History
गागरोन दुर्ग वीरों की वीरता का केंद्र रहा हैं, यहाँ के खींची राजपूतों के पराक्रम का यह किला प्रतीक रहा हैं. यह हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक गढ़ हैं. जहाँ संत पीपा की मठ भी हैं. धनुषाकार द्वार, शीश महल, जनाना महल, मर्दाना महल की शिल्पकारी अपने आप में अनूठी हैं.
इस किले में अनेक स्मारक, जलाशय, कुएं, भंडारण भी बने हर हैं. यहाँ पहुचने के लिए आप झालावाड़ अथवा कोटा के रास्ते से आ सकते हैं. गागरोन से कोटा की दूरी 90 किमी हैं. झालावाड़ से गागरोन के लिए कई सारे साधन उपलब्ध रहते हैं. जहाँ से मात्र दस किमी की दूरी पर यह किला स्थित हैं.
गागरोन किले की रोचक बातें व इतिहास
देश में ऐसे बहुत कम ही किले है जो चारो ओर से जल से घिरे है जिनमें गागरोन का किला भी एक हैं. इस किले के बुर्ज पहाड़ियों से मिलते हैं. गागरोन की सबसे रोचक बात यह है कि शायद यह देश का पहला किला होगा, जिसको बनाने में नीव का उपयोग नहीं किया गया.
अचलदास खींची यहाँ के पराक्रमी शासक थे. जब होशंगशाह ने इस दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया तो कभी भी अचलदास के शयनक्क्ष के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की.
कुछ लोग बताते है कि इस किले में आज भी कोई परलौकिक शक्तियाँ निवासी करती हैं. लोग मानते है कि राजा आज भी अपने महल में आकर पलंग पर सोते हैं तथा हुक्का पीते हैं.
गागरोन किले का निर्माण
बांधकाम के नजरिए से देखा जाए तो राजस्थान में इस किले की गिनती बेजोड़ किले में होती है और आपको बता दें कि इसकी सबसे मुख्य बात यह है कि इसके सिक्योरिटी सिस्टम को किले का निर्माण करते समय काफी मजबूत बनाया गया था।
इस किले के चारों तरफ काफी ऊंची पर्वत माला स्थित है, जिसकी वजह से इस किले को कुदरती तौर पर सुरक्षा प्राप्त है।
इस किले का निर्माण इस प्रकार से करवाया गया था कि गागरोन किला दूर से किसी भी व्यक्ति को न दिखाई दे। इसलिए अक्सर दुश्मनों को दूर रहने पर यह किला स्पष्ट तौर पर नहीं दिखाई देता था और यही वजह है कि दुश्मन दूर से गागरोन किले की सिचुएशन के बारे में सटीक अंदाजा नहीं लगा पाते थे।
गागरोन किले का निर्माण करने के लिए बड़े-बड़े पत्थरो से निर्मित शीला का इस्तेमाल किया गया था। इस किले के आसपास में लगातार पानी से भरी रहने वाली खाई भी उपलब्ध है और किले में घुमावदार प्रवेश द्वार भी है.
जिसकी वजह से इसके सिक्योरिटी सिस्टम को तोड़ना किसी भी दुश्मन के लिए काफी कठिन काम था। प्राचीन काल में इस किले के मुख्य प्रवेश द्वार पर लकड़ी का उठने वाला पुल भी उपलब्ध था।
गागरोन किले की खासियत
12 वीं शताब्दी में डोड महाराजा बिजल देव के द्वारा गागरोन किले को बनाया गया था और तकरीबन 300 साल किले पर खींची ठाकुर राजाओं के द्वारा शासन चलाया गया था।
इस किले के साथ 14 युद्ध और 2 जौहर जैसी कहानियां भी जुड़ी हुई है। आपको हम यह भी बता दें कि इसकी गिनती उत्तर भारत के एकमात्र ऐसे किले में होती है जो चारों ही साईड से पानी से घिरा हुआ है।
यही वजह है कि इसे जलदुर्ग भी कहा जाता है, साथ ही यह एक ऐसा किला है जिसके टोटल 3 परकोटे उपलब्ध है। आपको बता दें कि सामान्य तौर पर किसी भी किले में दो ही परकोटे होते हैं परंतु इसमें तीन परकोटे हैं.
इस किले की मुख्य बात यह भी है कि इसे जब बनाया जा रहा था तब इसकी नींव नहीं डाली गई थी अर्थात गागरोन किला बिना नीव के ही तैयार हुआ है परंतु इसके बावजूद भी यह काफी मजबूत किला है।
राव मुकुंद सिंह के द्वारा किले को सौंपना
प्राप्त जानकारी के अनुसार गागरोन किले पर मुगल शहंशाह शाहजहां ने भी अपना शासन चलाया था परंतु आगे चलकर के उन्होंने राव मुकुंद सिंह को गागरोन किला सौंप दिया था। बता दे कि राव मुकुंद सिंह कोटा के राजा थे।
इस प्रकार शाहजहां के द्वारा राव मुकुंद सिंह को किले का अधिकार सौंपने के बाद किले पर ठाकुरों का अस्तित्व हो गया था। इस किले के बारे में यह भी बात कही जाती है कि समय समय पर अलग-अलग राजा के द्वारा गागरोन किले का निर्माण करवाया गया था और 18वीं शताब्दी आते-आते तकरीबन 5 बार गागरोन किले के क्षेत्र को विस्तारित किया गया था।
हजारों महिलाओं का जोहर
इतिहास की किताबों में राजा अचलदास खींची को मालवा का अंतिम राजा कहा जाता है। जब मालवा की शक्ति लगातार तेजी के साथ बढ़ रही थी और मालवा का विस्तार हो रहा था, तो उसी समय मुस्लिम शासकों की भी नजर मालवा के इलाके पर पड़ी और फिर उन्होंने मालवा को अपने अधिकार में लेने की ठानी।
इसके बाद साल 1423 में मांडू के सुल्तान होशंग शाह के द्वारा लगभग 84 हाथी, 30000 घुड़सवार और हजारों पैदल सेना के साथ मालवा के गढ़ को घेर लिया गया। इस पर जब अचलदास को यह पता चला कि दुश्मन सेना उनके किले पर हमला करने आ रही है,
साथ ही उन्हें यह भी पता चला कि सामने वाले दुश्मन की ताकत उनसे ज्यादा है, तो उन्हें अपनी पराजय दिखाई देने लगी परंतु इसके बावजूद उन्होंने आत्मसमर्पण करने से अच्छा राजपूती धर्म निभाना सही समझा और उन्होंने दुश्मन से युद्ध लड़ा, जिसमें उन्होंने वीरगति को प्राप्त किया।
हालांकि इस युद्ध में दुश्मन सेना के भी कई सैनिक मारे गए थे। राजा अचलदास की हार के बाद मालवा की हजारों स्वाभिमानी महिलाओं ने मुगल सैनिकों के हाथ में आने से अच्छा अपनी जान को निछावर करना समझा.
इस प्रकार एक निश्चित दिन सभी महिलाओं ने जौहर कर लिया। इस जौहर में राजपूत महिलाओं के अलावा अन्य जाति की महिलाएं भी शामिल थी।
गागरोन किले का रहस्य
विशाल युद्ध में जब राजा अचलदास की हार हुई और होशंग शाह ने जीत हासिल की, तो उसके बाद भी उन्होंने राजा अचलदास कि किसी भी स्मृति या फिर व्यक्तिगत निवास के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की। इसके पीछे वजह थी खींची की वीरता।
मुस्लिम शासक अचलदास खींची की वीरता से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने सैकड़ों साल किले पर राज करने के बावजूद भी अचलदास के सोने वाले स्थान में से न तो उनकी पलंग को हटाया ना ही उनकी पलंग को नष्ट करने का प्रयास किया।
साल 1950 तक अचलदास खींची की पलंग उसी जगह पर मौजूद थी, जहां पर जब अचलदास खींची जिंदा थे, तब थी।
गागरोन किला के आसपास के पर्यटन स्थल
अगर कोई व्यक्ति गागरोन किले को घूमने जाने का प्लान बना रहा है तो उसे यह भी पता कर लेना चाहिए कि इस किले के आसपास दूसरे कौन से ऐसे पर्यटन स्थल है जिन्हें एक बार अवश्य देखना चाहिए।
नीचे हम कुछ ऐसे फेमस पर्यटन स्थल के नाम आपको दे रहे हैं, जो गागरोन किले के आसपास में ही मौजूद है। आप चाहे तो यहां पर भी घूमने के लिए जा सकते हैं।
- चंद्रभागा मंदिर
- भीमसागर बांध
- झालावाड़ का किला
- सरकारी संग्रहालय
- शाह का मकबरा
- झालरापाटन सूर्य मंदिर
गागरोन किले में जौहर
गागरोन किले में पहला जौहर तब हुआ जब साल 1423 में मांडू के सुल्तान होशंग शाह के द्वारा किले पर हमला किया गया जिसमें राजा अचलदास वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद दुर्ग में रहने वाली रानिया और महिलाओं ने जौहर की अग्नि में अपने आप को भस्म कर लिया।
दूसरा जौहर साल 1444 में तब हुआ जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम और अचलदास खींची के पुत्र पालनसी के बीच युद्ध हुआ जिसमें दोनों तरफ से कई सैनिकों की मौत हुई।