मेवाड़ के कुल को बचाने वाली पन्ना धाय की कहानी Panna Dhai & Banveer In Hindi आज हम पढेगे. सांगा के पुत्र उदयसिंह की धाय माँ थी.
रानी कर्णावती के बलिदान के पश्चात जब बनवीर उदय सिंह को मारने चला था तो राजकुमार की जान बचाने के लिए पन्ना ने अपने बेटे का बलिदान देकर उदयसिंह की जान बचाई और उनकी परवरिश की थी.
पन्ना धाय की कहानी इतिहास बायोग्राफी
पूरा नाम | पन्ना धाय |
अवधि | 16 वीं सदी |
पहचान | बलिदानी धाय माता |
पिता का नाम | हरचंद हाँकला |
परवरिश | राणा उदयसिंह |
स्मारक | पन्ना धाय म्यूजियम |
पुत्र | चन्दन |
प्रसिद्धि | स्वामिभक्ति |
राजस्थान में ही नही अपितू भारतीय संस्कृति में पन्ना धाय का नाम मातृत्व, बलिदान, साहस एवं बलिदान का प्रतीक बन गया है. पन्ना धाय समर्पण और त्याग की प्रतिमूर्ति थी. महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ में अस्थिरता रही.
सांगा के बाद रतनसिंह शासक बना लेकिन सनः 1531 में उसकी मृत्यु हो गई. उसके बाद विक्रमादित्य मेवाड़ का शासक बना लेकिन राजा व उसकी माँ हाड़ी रानी कर्मवती के व्यवहार से सामंत व जनता असंतुष्ट थी.
बहादुरशाह के आक्रमण के कारण मेवाड़ को अपार जनधन की हानि उठानी पड़ी. सांगा के भाई पृथ्वीराज के औरस पुत्र बनवीर ने सनः 1536 में विक्रमादित्य की हत्या करके मेवाड़ के सिहासन पर अधिकार कर लिया. वह विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह की भी हत्या करके निश्चिन्त होकर राज्य भोगना चाहता था.
पन्ना उदयसिंह की धात्री माता थी. और कर्मवती के जौहर के बाद उदयसिंह की सार संभाल की जिम्मेदारी पन्ना धाय पर ही थी. उदयसिंह मेवाड़ का भावी उतराधिकारी था.
अत बनवीर इस उतराधिकारी को भी समाप्त करके अपने राज्य को आरक्षित करना चाहता था. लेकिन पन्ना धाय एक वीरांगना थी. अतः उसने स्वामिभक्ति के अनुकरणीय लगन से उदयसिंह की रक्षा की.
उदयसिंह की ही आयु का पन्ना धाय का पुत्र चन्दन था. पन्ना धाय का आवास चित्तोड़ के किले में कुम्भा महल में था. पन्ना धाय को जब जनाना महल से चीखे निकलती सुनाई दी तो वह समझ गई कि रक्त पिपासु बनवीर हत्या के उद्देश्य से उदयसिंह की तलाश कर रहा है.
उसने तुरंत बालक उदयसिंह को एक टोकरी में सुलाकर उसे पतियों से ढक कर अपने विश्वस्त नौकर को उसे महल से बाहर निकालने का उत्तरदायित्व सौपा.
राजसी वस्त्र पहनकर अपने पुत्र चन्दन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया. सता लोलुप बनवीर के आते ही पन्ना धाय ने अपने पुत्र की तरफ हाथ से ईशारा दिया.
बनवीर ने तलवार से पन्नाधाय के बालक को उदयसिंह समझकर हत्या कर दी. नन्हे बालक का शव का पन्ना ने अंतिम संस्कार कर दिया और स्वयं बालक उदयसिंह एवं स्वामिभक्त सेवक के पास पहुचकर देवालिया के जागीरदार रामसिंह के पास पहुची.
वहां उसे पूरा सम्मान मिला. वहां से उदयसिंह को बचाकर सुरक्षित स्थान कुम्भलगढ़ ले गई. किलेदार आशा देपुरा का भांजा बनकर उदयसिंह वहाँ से बड़ा हुआ.
पन्ना धाय द्वारा किये गये इस बलिदान का उदहारण कही पर भी देखने को नही मिलता है. पन्ना धाय ने इस अविस्मरनीय बलिदान के कारण ही उसी दिन से पन्ना धाय को मेवाड़ की वीरांगना के रूप में सम्मान मिल रहा है.
पन्ना धाय कौन थी Biography panna dai history in hindi
पन्ना मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की धाय माँ थी. महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद इनके अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण मेवाड़ में अव्यवस्था व्याप्त हो गई. तथा गुजरात के शासक बहादुरशाह के मेवाड़ आक्रमण से महाराणा विक्रमादित्य की शक्तिहीनता भी स्पष्ट हो गई.
अतः मेवाड़ में एक सामंत बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर युवराज उदयसिंह की हत्या का प्रयास किया. पन्ना धाय ने अपने पुत्र को उदयसिंह की जगह लिटाकर बनवीर की तलवार का शिकार होने दिया. और उदयसिंह को किले से बाहर भेज उसके प्राण की रक्षा की.
पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर स्वामिभक्ति का परिचय दिया. मेवाड़ के इतिहास में पन्नाधाय का त्याग एक अविस्मरणीय घटना हैं.
Panna Dhai : The Loyal Nurse Sacrifice For Motherland
Panna dhai was the royal maid of rani karnavati, wife of Maharana Sangram Singh (Rana Sanga) of Mewar. before committing Jauhar.
she called her little son Udai Singh’s faithful nurse and said ” Panna, my lord awaits me in heaven’ i entrust the future king of Mewar to your care. you will be his mother hereafter. not i. promise me to protect him till he is able to rule his people.
Panna accepted the great responsibility with tears in her eyes. ”he will be my son hereafter, oh queen’ she said sobbingly.
prince vikramajit, an unworthy ruler. was already unpopular in Mewar. the high-spirited and brave men of Mewar could not tolerate his cruelty, insolence, and injustices.
they murdered him. banbir, the son of Rana Santa’s brother, Prithviraj, was then chosen to rule during the minority of prince, Udai Singh.
he was both ambitious and cunning. he wanted the throne, so he decided to kill Udai Singh. he was neither noble nor kind. he awaited the approach of night to the child (Udai Singh).
now the night had fallen. little Udai Singh had just taken food and gone to bed. Panna just lulled him into a deep sleep, suddenly she heard a great uproar in direction of the women’s quarters. an old maidservant had just arrived to pick up the remains of the prince’s meal.
”what is the noise about?”, asked Panna dhai anxiously.
”banbir, the new ruler, is eager to siege the throne permanently for himself. he wants to murder the young prince, Udai Singh, whispered the old women in trembling voice.
without wasting a moment, Panna took up the little prince. she hid him in a fruit basket. she covered the basket with leaves. she handed it to the women.
she ordered the women ” take it and hide it among the bushes of the river bed” then she put her own child in the place of Udai Singh. and she was just in time.
banbir rushed inside the apartment almost the next moment ”where is the prince Udai Singh?”, thundered banbir.
with a painful heart, Panna dhai pointed to the cradle. with a broken heart, she witnessed the cruel dagger thrust mercilessly into the tender body of his own son. can you imagine Panna dhai feelings at that time? she saved Udai Singh but sacrificed her son.
nor could Panna dhai stay to mourn her dead child. as soon as cruel banbir left the hall, she ran to the river bed. she carried Udai Singh far into mountains to a spot of safety.
thus Panna dhai, the royal nurse, fulfilled her promise to the departed queen. what a great sacrifice of an unlettered maidservant of the motherland.
Sorry to say but Maa karmawati ke beare me aapne sahi nahin likha ki unke shasan se khush nahin the. Infact maa ke avahan par share sardar aagaye they war ke liye against bahadur Shah k against. Humayun jab madadd nahi karne aaya to maa khud rann me utari thi aur fir unhone jauhar kiya tha. Baad me bache huye rajput sardaro ne fir se ekkatha hokar bahadurshah pe attack kar chitttor jeeta usake baad vikramaditya Rana bane jo banveer aur kuch sardaro ke Kahane pe samanto ko beizzat karte they aur janta ko b. Unse janta naraz thi naki maa Karnawati se.
पन्ना धाय की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?