बालाथल सभ्यता का इतिहास एवं विशेषताएं | Balathal Civilization In Hindi उदयपुर नगर से पूर्व में 42 किलोमीटर दूर उन्ठाला गाँव वर्तमान में वल्लभनगर नाम से बसा हुआ है. यह उपखंड मुख्यालय है, इसके उत्तर में बालाथल गाँव है. इस गाँव की पूर्वी दिशा में एक टीला है. इस टीले के उत्खनन का कार्य मार्च 1993 में डक्कन कॉलेज पूना के डॉक्टर वी. एन मिश्रा के नेतृत्व में डॉक्टर वी. एस शिंदे, डॉक्टर आर के मोहन्ती तथा इंस्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज, राजस्थान विद्यापीठ विश्विद्यालय उदयपुर के डॉक्टर देव कोठारी, डॉक्टर ललित पांडे एवं डॉक्टर जीवन खरकवाल की देख रेख में किया गया.
प्राचीन राजस्थान की सभ्यताएं- बालाथल (उदयपुर) का इतिहास

बालाथल में उत्खनन का कार्य 7 वर्षों तक किया गया. यहाँ ताम्र पाषाण युग की संस्कृति के दर्शन होते है. वैसे यह स्थल आहड़ का ही एक विस्तार है. यह सभ्यता लगभग 3200 ई.पू. तक अस्तित्व में आ चुकी थी.
बालाथल सभ्यता की विशेषताए (Balathal civilization characteristic)
ताम्र उपकरण
बालाथल के निवासी तांबे के बने हुए उपकरणों और अस्त्रों का उपयोग करते थे. इनमे कुल्हाड़ी, चाक़ू, छैनी उस्तरा तथा बाण के फलक का प्रयोग करते थे. पत्थर के बने हुए औजार भी मिलते है. इसका कारण यहाँ के लोगों को तांबा सुगमता से उपलब्ध होना माना जा सकता है.
मिट्टी के बर्तन
बालाथल से प्राप्त विशेष आकार के चमकदार मिटटी के बर्तन दो प्रकार के है. एक खुरदरी दीवारों वाले तथा दूसरे चिकनी मिटटी की दीवारों वाले. काले लाल तथा गहरे लाल रंग लिए ऐसे बर्तनों के बाहर तथा भीतर चमकदार लेप किया हुआ मिलता है.
काले तथा लाल बर्तनों पर सामान्यतया सफेद रंग के चित्र मिलते है. यहाँ विशेष प्रकार के बर्तन बनाएं ही नही जाते थे, अपितु अन्य क्षेत्रों को निर्यात भी किये जाते थे.
निर्माण कार्य
बालाथल के टीले के मध्य में एक विशाल दुर्ग स्वरूप सरंचना खोजी गई, जिसकी दीवारे 3.15 मीटर ऊँची तथा 5 मीटर मोटी है. यह दुर्ग 5600 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ था.
यह दुर्ग मिटटी तथा पत्थरों से बनाया गया था. बालाथल की खुदाई में ग्यारह कमरों के बड़े भवन की रचना भी प्राप्त होती है. जो ताम्रपाषाण काल की द्वितीय अवस्था में निर्मित हुए थे. जिस प्रकार आहड़ की ताम्र पाषाणकालीन सभ्यता में तांबा गलाने की भट्टियों के अवशेष मिले है. उसी प्रकार बालाथल में लोहा गलाने की भट्टियों के अवशेष मिले है.
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आहड़ सभ्यता के लोग दक्षिणी राजस्थान के पहले किसान, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले तथा धातु के औजारों के निर्माता थे.
बालाथल में मिला था 2700 साल पुराना कंकाल
बता दे कि बालाथल में जब खुदाई की जा रही थी तो खुदाई के दरमियान एक ऐसा कंकाल प्राप्त हुआ, जो पद्मासन में था। खुदाई के दरमियान यहां पर सिर्फ एक ही नहीं बल्कि टोटल 5 प्रकार के कंकाल प्राप्त हुए थे, जिसमें से एक व्यक्ति के लिंग के बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई थी, वही जो दूसरा कंकाल था वह 50 साल के एक आदमी का कंकाल था, जिसके घुटने में कुछ समस्या देखी गई थी।
इसके अलावा जो तीसरा कंकाल यहां से मिला था वह एक महिला का था जिसकी उम्र 35 साल कार्बन टेस्टिंग करके बताई गई थी। उस महिला के ऊपर एक लोटा रखा हुआ था, जो इस बात को दर्शाता है कि शायद उस जमाने में किसी प्रथा का पालन महिलाओ को करना पड़ता था।
जो चौथा कंकाल यहां से प्राप्त हुआ था उस व्यक्ति के ऊपर जब रिसर्च की गई तब एक्सपर्ट को यह बात पता चली कि शायद उस व्यक्ति को कोढ या फिर लेप्रोसी जैसी समस्याएं थी और इसी बात से यह बात भी लोगों के दिमाग में आई कि इंडिया में कोढ का सबसे पुराना मामला यहीं हो सकता था।
अगर आप कभी यहां पर मौजूद कंकाल को देखेंगे तो आप यह देख पाएंगे कि जो कंकाल के हाथों की उंगलियां हैं वह कुछ इस प्रकार से है कि उन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि योगी योग कर रहे थे और उसी दरमियान उनकी मृत्यु हो गई, क्योंकि उनके हाथों की उंगलियां बिल्कुल योग मुद्रा में दिखाई दे रही हैं।
हालांकि एक दिलचस्प बात यह भी है कि 3000 साल बीत जाने के बावजूद भी ना तो उनके हाथों की हड्डिया खराब हुई है, ना ही उनकी योग मुद्रा में जरा सा बदलाव हुआ है।
बालाथल सभ्यता के बारे में रोचक तथ्य
- बता दें कि डॉक्टर बी एन मिश्रा के द्वारा साल 1962 और 1963 के बीच के दरमियान बालाथल सभ्यता के बारे में लोगों को बताया गया था क्योंकि यही वह व्यक्ति जिन्होंने इस सभ्यता की खोज की थी।
- बीएन मिश्रा के अलावा आरके मोहंती, डॉक्टर देव कोठारी, डॉक्टर ललित पांडे जैसे कई महत्वपूर्ण लोग भी इस सभ्यता के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं। इन्हीं सब लोगों ने मिलकर के साल 1993 के आसपास में बालाथल सभ्यता का उत्खनन किया था।
- जब बालाथल सभ्यता की खुदाई की जा रही थी तब इस सभ्यता में 11 कमरों वाला एक बहुत ही बड़ी इमारत के अवशेष प्राप्त हुए थे।
- बालाथल सभ्यता में रहने वाले लोग कपड़े बुनने के बारे में अच्छी जानकारी रखते थे। इसके अलावा वह अच्छे प्रकार के बर्तन बनाने में भी निपुण थे।
- खुदाई के दरमियान गवर्नमेंट को टोटल 5 बहुत ही बड़ी भटि्टयाँ बालाथल सभ्यता से लोहा गलाने की प्राप्त हुई थी, जो इस बात को इंगित करता है कि यहां पर लोहे का काम बड़े पैमाने पर किया जाता था।
- खुदाई के दरमियान बालाथल सभ्यता में से बड़े-बड़े कपड़े के टुकड़े भी प्राप्त हुए थे जो इस बात को दर्शाता है कि यहां पर लोहा गलाने के अलावा कपड़े का काम भी काफी बड़े पैमाने पर होता था।
- खुदाई के दरमियान यहां से सांड की कई बड़ी-बड़ी मूर्तियां भी प्राप्त हुई थी।
- विद्वानों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि बालाथल सभ्यता में रहने वाले अधिकतर लोग मांसाहारी खाना खाते थे।
- तकरीबन 4000 साल पुराना एक कंकाल भी यहां से प्राप्त हुआ था, जिसकी रिसर्च करने पर यह बात सामने आई थी कि वह इंडिया में पहले ऐसे व्यक्ति का कंकाल था, जो कुष्ठ रोग से पीड़ित था।
- खुदाई के दरमियान ऐसे बहुत सारे उपकरण यहां से प्राप्त हुए थे जो तांबे के थे, साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के तांबे के आभूषण भी यहां से प्राप्त हुए थे।
- बालाथल सभ्यता में रहने वाले लोग खेती का काम भली भांति जानते थे। इसके अलावा वह जानवरों का शिकार भी करते थे, साथ ही दुधारू पशु पालने का काम भी करते थे।
FAQ:
Q: बालाथल सभ्यता किस नदी पर है?
Ans: उदयपुर जिले में बालाथल गाँव के पास बेड़च नदी पर
Q: बालाथल कहां है?
Ans: बालाथल राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर के पास स्थित है।
Q: बालाथल किस जिले में स्थित है?
Ans: बालाथल उदयपुर जिले में स्थित है।
Q: बालाथल सभ्यता के अवशेष किस जिले से प्राप्त हुए हैं?
Ans: राजस्थान के उदयपुर जिले से
Q: राजस्थान की सबसे प्राचीन सभ्यता कौन सी है?
Ans: गणेश्वर सभ्यता
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