प्राचीन भारत के विज्ञान आविष्कार | Ancient India Inventions In Hindi

Ancient India Inventions In Hindi प्राचीन भारत के विज्ञान आविष्कार वेदों में ज्ञान की बहुत सारी बाते भरी पड़ी है. आज का विज्ञान जो खोज रहा है वह बहुत पहले ही खोजा जा चूका है.

बस फर्क इतना है कि आज का विज्ञान जो खोज रहा है उसे वह अपना आविष्कार बता रहा है और उस पर पश्चिम देशों के वैज्ञानिकों के लेबल लगा रहा है.

हालाँकि यह इतिहास सिद्ध है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान पहुचा और यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर जो आविष्कार किये और सिद्धांत बनाए उससे आधुनिक विज्ञान को मदद मिली.

भारत के उन महान दस ऋषियों और उनके आविष्कार (famous indian scientists and their inventions) के बारे में सक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है.

प्राचीन भारत के विज्ञान आविष्कार | Ancient India Inventions In Hindi

प्राचीन भारत के विज्ञान आविष्कार | Ancient India Inventions In Hindi

प्राचीन भारत के अद्भुत आविष्कार जिनके सामने आज का विज्ञान कुछ भी नहीं- हमारे देश में लोग छोटी से छोटी चीजों का प्रयोग करके बड़ी बड़ी चीजें बना लेते हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में अभी तो भारत अन्य देशों के मुकाबले थोड़ा पीछे है लेकिन अगर हम बात करें प्राचीन भारत की तो उस समय हमारा देश सबसे आगे था।

भारत देश के प्राचीन विज्ञान पर नजर डालने पर हम इस बात की पुष्टि कर सकते है। वेद शास्त्रों और अन्य पुराणों में भी ऐसी ऐसी बातों का उल्लेख किया गया है जो उस समय के मुकाबले काफी आगे थी।

तो चलिए जानते हैं कि प्राचीन भारत के ऐसे कौन से अद्भुत आविष्कार हैं जिनके सामने आज के विज्ञान और यूं कहे कि वैज्ञानिक पानी भरते हैं।

प्राचीन भारत के अद्भुत आविष्कार

Solar system – हमारे ब्रह्मांड के बारे में लोगों की विचारधारा काफी अलग है लेकिन वैज्ञानिकों ने अपनी खोज से साबित किया की उनकी विचारधारा कितनी गलत है।

सौर मंडल के बारे मेें पता करने में वैज्ञानिकों को बहुत ज्यादा समय लगा। बता दें उसके बारे में धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में पहले ही उल्लेख किया जा चुका।

ऋग्वेद में यह स्पष्ट किया गया है कि सूर्य अपने कक्ष पर घूमते हुए इस तरह का संतुलन बनाने की कोशिश करता है जिससे पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुए एक दूसरे से ना टकराए।

सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी – सकरात्मकता की अनुभूति के लिए हमें नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है। पर क्या आप जानते हैं हनुमान चालीसा मेंजी सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का भी वर्णन किया गया है।

हनुमान चालीसा की पंक्ति “जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू” के अनुसार सूर्य और पृथ्वी की दूरी सहस्त्र योजन पर है।

ऑर्गन ट्रांसप्लांट या अंग प्रत्यारोपण – ऑर्गन ट्रांसप्लांट वैज्ञानिकों की नई खोज है जिसके अंतर्गत लोगों को नया जीवन प्रदान करने की कोशिश की जाती है। ‌लेकिन आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि यह तकनीक बहुत पुरानी है।

क्योंकि ऑर्गन ट्रांसप्लांट बहुत साल पहले किया जा चुका है। ऑर्गन ट्रांसप्लांट के अंतर्गत भगवान शिव ने गणेश जी के सिर कट जाने के बाद उनके धड़ पर हाथी का सिर जोड़ा था।

Live telecast – लाइव टेलीकास्ट के जरिए आज हम sports के साथ साथ कई दूसरी चीजें देखते है। लेकिन आपको आश्चर्यचकित करने के लिए हम कहना चाहेंगे कि यह तकनीक भी बहुत पुरानी है।

लाइव प्रसारण का उल्लेख हमें महाभारत में देखने को मिलता है जब संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का पूरा युद्ध दिखाया था। यह भी एक तरह का लाइव प्रसारण है।

परमाणु सिद्धांत के आविष्कारक महर्षि कणाद (inventor of atomic principle Maharishi Kanad)

परमाणु बम के बारे में आप सभी जानते है. यह कितना खतरनाक है यह भी सभी जानते है आधुनिक काल में परमाणु बम के आविष्कारक है जे रोबर्ट ओपनहाइमर. रोबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 कई वैज्ञानिकों ने काम किया और 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परिक्षण किया गया.

हालाँकि परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डॉल्टन को माना जाता है, लेकिन उनसे भी 2500 वर्ष पूर्व ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे हुए सूत्र के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था.

भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है. आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते है, कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे.

विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेरब्रुक ने लिखा है कि अणु शास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे.

बौधायन (Ancient Indian scientist Buddhist in the field of mathematics)

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता है. पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे. लेकीन आज विश्व में यूनानी ज्यामितिशास्त्री पाइथागोरस और युक्लिड के सिद्धांत ही पढाये जाते है.

वास्तव में 2800 वर्ष पूर्व (८०० ईसा पूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी. उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था.

शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार प्रकार की यज्ञवेदियाँ बनाई जाती है. दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने ही क्षेत्रफल का समकोण समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान वृत में परिवर्तन करना और इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया था.

भास्कराचार्य (Bhaskaracharya’s contribution in the field of mathematics and astronomy)

भास्कराचार्य प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे. इनके द्वारा लिखित ग्रंथो का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चूका है. भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथो ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है.

न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था और इन्होने अपने दूसरे ग्रंथ सिद्धान्तशिरोमणी में इसका उल्लेख भी किया है.

गुरुत्वाकर्षण के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्वशक्ति से अपनी ओर खीच लेती है. इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है, इससे यह सिद्ध होता है कि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है.

भास्कराचार्य द्वारा ग्रंथ लीलावती में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है. सन 1163 में उन्होंने करण कुतूहल नामक ग्रन्थ की रचना की. इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है तो चंद्रग्रहण होता है.

आयुर्वेद के जनक महर्षि पतंजलि का योगदान (Maharishi Patanjali, father of Ayurveda)

योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चर्चा में थे. पतंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रंथ मिलते है- योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रंथ. पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है.

पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली बार व्यवस्था दी और उसे चिकित्सा और मनोविज्ञान से जोड़ा. आज दुनियाभर में योग से लोग लाभ पा रहे है.

पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे- अभ्रक, विंदास, धातुयोग और लौह्शास्त्र इनकी देन है. पतंजलि संभवत पुष्यमित्र शुंगके शासनकाल में थे. राजाभोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) ने 5 वर्षों के अपने शोध का निष्कर्ष निकाला कि योगसाधना से कर्क रोग (कैंसर) से मुक्ति पाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है.

चिकित्सा के क्षेत्र में आचार्य चरक (Acharya Charak in medical field)

अथर्ववेद में आयुर्वेद के कई सूत्र मिल जाएगे. धन्वन्तरि, रचक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को पेड़ पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक चिकित्साशास्त्र दिया. आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में की जाती है.

ऋषि चरक ने 300-200 ईसा पूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रन्थ चरक संहिता लिखा था. उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है. आचार्य चरक ने शरीर शास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, ह्रद्यविकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया है.

चरक एवं सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त करके 3 खंडो में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे. उन्होंने दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया, साथ ही उन्होंने अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवन शैली का वर्णन किया जिससे कोई रोग व शोक नही हो.

आठवी शताब्दी में चरक संहिता का अरबी अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिम देशों तक पंहुचा. चरक के ग्रन्थ की ख्याति विश्वव्यापी थी.

शल्यचिकित्सा में महर्षि सुश्रुत का योगदान (Maharishi Sushrut in Surgery)

महर्षि सुश्रुत शल्यचिकित्सा (सर्जरी) के आविष्कारक माने जाते है. 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का ईलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्यचिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किये.

आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पहले यह कार्य करके दिखा दिया था. सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे.

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित सुश्रुत संहिता ग्रंथ में शल्यचिकित्सा से सबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है. इस ग्रंथ में चाक़ू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्यचिकित्सा चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरण के नाम मिलते है. और इस ग्रन्थ में लगभग 300 प्रकार की शल्य चिकित्साओं का उल्लेख मिलता है.

रसायनशास्त्र में नागार्जुन का योगदान (Nagarjuna’s contribution in chemistry)

नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया, रसायन शास्त्र पर इन्होने कई पुस्तकों की रचना की जिनमे रस रत्नाकर और रसेन्द्र मंगल बहुत प्रसिद्ध है.

रसायनशास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ साथ इन्होने अपनी चिकित्सकीय सुझबुझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की. चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तके कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी योग सार और योगष्ट्क है.

नागार्जुन द्वारा विशेष रूप से सोना धातु एवं पारे पर किये गये उनके प्रयोग और शोध चर्चा में रहे है. उन्होंने पारे पर सम्पूर्ण अध्ययन कर सतत 12 वर्षों तक संशोधन किया, नागार्जुन पारे से सोना बनाने का फौर्मूला जानते थे. अपनी किताब में उन्होंने लिखा था कि पारे के कुल 18 संस्कार होते है.

पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनकी मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत के आधार पर ही रखा है. नागार्जुन की जन्मतिथि एवं जन्म स्थान के विषय में अलग अलग मत है.

व्याकरण में पाणिनि का योगदान (Panini, the great grammarian)

दुनिया का पहला व्याकरण पाणिनि ने लिखा. 500 ईसा पूर्व पाणिनि ने भाषा के शुद्ध प्रयोग की सीमा का निर्धारण किया, उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा को व्याकरणबद्ध किया. इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी जिनमे 8 अध्याय 4 हजार सूत्र है.

व्याकरण के इस ग्रंथ में पाणिनि ने विभक्ति प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहित किये है.

अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नही है, इनमे तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है. उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनितिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान रहन सहन आदि प्रसंग के साथ साथ स्थान स्थान पर अंकित है.

19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप ने पाणिनि के कार्यों पर शोध किया, उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथो तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले है. आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनि के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली, दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनि के ग्रन्थ का योगदान है.

महर्षि अगस्त्य (Maharishi Agastya)

महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे, निश्चित ही बिजली का आविष्कार थोमस एडिसन ने किया लेकिन एडिसन अपनी किताब में लिखते है कि एक रत में संस्कृत का वाक्य पढ़ते पढ़ते सो गया. उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली.

महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे. इनकी गणना सप्तऋषियों में की जाती है. ऋषि अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता नामक ग्रंथ की रचना की. आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से सबंधित सूत्र मिलते है.

प्राचीन भारत में वैज्ञानिक उपलब्धियां Scientific Achievements In ancient India In Hindi

भारत में विज्ञान और प्रोद्योगिकी का इतिहास बहुत पुराना हैं. भारतीय धर्म शास्त्र वेद पुराण, अतीत की खगोलीय, गणितीय, ज्योतिष गणना और सम्रद्ध चिकित्सा और वैज्ञानिक जीवन पद्धति के प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. आज के इस लेख में हम प्राचीन भारत की प्रमुख वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारें में जानेगे.

अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है इन्फ्रियोरिटी कॉन्प्लेक्स, जिसका बोलचाल में ज्यादातर उपयोग अंग्रेजी में ही किया जाता है। लेकिन यह सबसे ज्यादा प्रासंगिक दुनिया के सबसे बड़े हिंदी भाषी देश में है क्योंकि सदियों तक वक्त और आधुनिकता की आंधी में बिखरे हुए भारत के गौरव हो जब भी समेटने की कोशिश की जाती है तो उस पर कोई ना कोई कुतर्क हावी हो जाता है

और इस नासमझी का फायदा उठाकर भारत में इतना पाखंड और अंधविश्वास फैलाया जा चुका है की कोई अगर तथ्यों के साथ वेद या पुराणों की, प्राचीन इतिहास की, प्राचीन विज्ञान की बात भी करे तो दूसरी तरफ खड़े लोग उसको भी अंधविश्वासी की संज्ञा दे देते है।

अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई में हम शायद संस्कृति का संरक्षण नहीं कर पाए। भारत विज्ञान का गर्भ है जहां से विज्ञान को पहचाना गया, जाना गया, समझा गया, उस पर प्रयोग किए गए और परिणाम भी निकले।

इस बात से शायद आप सहमत होंगे कि भारत के इतिहास के साथ अतीत में बहुत कुछ फेरबदल किया गया है। तथ्य बदले गए हैं, नाम बदले गए है और यहां तक कि चरित्र भी बदला गया है। लेकिन इस खजाने को बटोरने की तरफ शायद हमारा ध्यान कम ही गया है, हर दौर में।

इस खजाने के भंडार यानी कि हमारे प्राचीन भारत के प्राचीन ग्रंथ जो कि संस्कृत में है, जिसने संस्कृत को पढ़ा वह प्रयोग नहीं कर पाया और जो प्रयोग कर सकता था उसने संस्कृत को पढ़ा नहीं और इसी जद्दोजहद में भारत को भारत का गौरव ना मिल सका।

देश में महज 18 संस्कृत यूनिवर्सिटी है जिनमें से 3 केंद्रीय और बाकी 14 राज्य स्तर पर है और एक डीम्ड है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिना संस्कृत के जाने हम अपने प्राचीन भारत के प्राचीन विज्ञान के गौरव को हासिल नहीं कर पाएंगे।

अनेकों प्रमाण होने के बावजूद भी हम प्राचीन विज्ञान को भारत के विकास से संबंधित मुख्यधारा में लाने का प्रयत्न नहीं कर रहे और विज्ञान भी उस कोटि तक समृद्ध था जहां तक आधुनिक विज्ञान भी नहीं पहुंच पाया अब तक।

राम सेतु इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण जिस के अस्तित्व को नासा ने भी माना है। निश्चित तौर पर हम यह कह सकते हैं की जैसे रामसेतु के बारे में सुना है उसको हम आज आधुनिक विज्ञान की तर्ज पर भी उसका अस्तित्व हम देख सकते हैं।

हो सकता है प्रमाणों की कमी के कारण ऐसे बहुत से अन्य उदाहरण भी दब कर रह गए हैं जिन पर आज हमारा ध्यान नहीं है। जैसे महाभारत के युद्ध में परमाणु हथियारों का उपयोग जिसमें भयंकर विनाश हुआ था, महाभारत के युद्ध में संजय के द्वारा दिव्य दृष्टि से धृतराष्ट्र के लिए लाइव टेलीकास्ट, इससे भी एक उत्कृष्ट विज्ञान का उदाहरण और सुनने को मिलता है, टेस्ट ट्यूब बेबी, 100 कौरव पुत्रों का जन्म एक ही भ्रूण से।

इसके अलावा भी बहुत से और प्राचीन विज्ञान के उत्कृष्ट उदाहरण है जिन तक हम आज भी नहीं पहुंच पाए हैं। टाइम ट्रेवल कि हम बात कर रहे हैं लेकिन प्राचीन भारत में इस पर भी प्रयोग हुए है।

राजा ककोमदी ने ब्रह्मा की यात्रा की थी और ऐसा बताया जाता है कि जब वह वापस धरती पर आए तब तक 108 युग बीत चुके थे और हनुमान चालीसा में सूर्य की दूरी बताई गई थी। ऐसे ही मौसम विज्ञान विभाग भी उत्कृष्ट था।

आज भी भारत के दूरदराज गांवों में जो लोग प्रकृति से जुड़े रहते हैं वह पक्षियों के व्यवहार को देखकर मौसम का आंकलन कर लेते हैं जहां सुनने को आता है कि पक्षी का घोंसला अगर पेड़ के ऊपर होगा तो सूखा पड़ेगा, नीचे हो तो भयंकर बारिश होगी, अगर घोंसला पेड़ के मध्य में होगा तो सामान्य मौसम रहेगा, चींटियां ज्यादा भोजन इकट्ठा करने लग जाए तो उसका संकेत है कि बाढ़ आने वाली है

आज से हजारों साल पहले भी भारत अध्यात्म, योग, वैदिक, वास्तु, वनस्पति, दर्शन, तकनीक, खगोल, धातु और रसायन विज्ञान इन सब पर अपनी महारत हासिल कर चुका था और अनगिनत इनके उदाहरण मिलते भी है जिसमें खगोल विज्ञान, ब्रह्मांड का विज्ञान और अरस्तू से बहुत पहले आर्यभट्ट ने भी दिया था।

एक कोलायाब्रेक वैज्ञानिक थे जिन्होंने महर्षि कणाद को यूरोपियन से भी महान वैज्ञानिक बताया था और यह जो प्रयोग चल रहे थे वह आज से तकरीबन 1500 से 2000 से लेकर 3000 साल या इससे भी ज्यादा पुराने रहे हैं।

उस समय भी प्राचीन भारत के विज्ञान की उत्कृष्टता इतनी थी। बौद्धयन ने परमाणु शास्त्र दिया था जिसपर ज्योमेट्री और अलजेब्रा आधारित है,

भास्कराचार्य ने आज से 800 साल पहले गुरुत्वाकर्षण पर काम किया था, शल्य चिकित्सा में भी प्राचीन विज्ञान बहुत आगे था जिसमें महर्षि सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता लिखी थी उसमें तीन सौ से ज्यादा प प्रकार की शल्य क्रियाओं का विवरण था, 101 से ज्यादा शल्यक्रिया में काम आने वाले उपकरणों के नाम थे।

ऋषि चरक ने शरीर विज्ञान भ्रूण प्रतिरक्षा पाचन इन सब से संबंधित काम किए इसके अलावा पशु चिकित्सा में भी हम अग्रणी रहे हैं जहां पालकपी व शालिहोत्र जैसे महान पशु चिकित्सक रहे और बहुत से आज भी ऐसे प्रमाण उपलब्ध है जो भारतीय अभियांत्रिकी और विज्ञान का गौरव है।

महरौली के लौह स्तम्भ के बारे में हम सब जानते हैं जो 1600 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है और आज तक जंग रहित है, इस पर एक आईआईटी में अध्ययन भी हुआ है। जब कभी इन पर शोध किया जाएगा, अध्ययन किया जाएगा तो निश्चित रूप से यह भी रामसेतु की तरह एक दिन आधुनिक विज्ञान की नजर में आएंगे और प्रमाणिकता हासिल करेंगे।

जहां असल मायनों में विज्ञान वही होता है जिसका प्रभाव समाज के अंतिम व्यक्ति और वंचित वर्ग तक हो, उनका जीवन सुविधाजनक बने। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत 48 वें स्थान पर है जिससे पता चलता है कि विज्ञान को लेकर आज भारतीय किस दशा में है।

2018 से पहले प्राचीन विज्ञान पर हम शोध केंद्र बनाने का विचार भी नहीं कर पाए थे आने वाले समय में हमें हर राज्य में शोध केंद्रों की जरूरत होगी, संस्कृत विश्वविद्यालयों की जरूरत होगी, जहां आमजन के विज्ञान का विकास हो सके। आखिर विज्ञान का धक्का ही देश को आगे बढ़ा पाएगा।

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