कश्मीरी पंडित कौन थे इनका इतिहास Kashmiri Pandit History In Hindi

कश्मीरी पंडित कौन थे इनका इतिहास Kashmiri Pandit History In Hindi: भारत में हजारों समुदायों के लोग रहते हैं मगर जब सताएं हुए अपने ही देश में निष्कासित जीवन जीने वालों की बात आती है, 

तो यकीनन कश्मीरी पंडितों के सिवाय किसी अन्य समुदाय का नाम पहले नहीं आएगा. 30 वर्षों से अधिक का वक्त बीत चूका है. इन्हें कश्मीरी हिन्दू या कश्मीरी ब्राह्मण भी कहा जाता हैं. आज के आर्टिकल में पंडितों की दुखभरी कहानी और इतिहास को जानेगे.

Kashmiri Pandit History In Hindi – कश्मीरी पंडित का इतिहास

पिछले कुछ वर्षों से भारत में असहिष्णुता और डर का माहौल के बारे में हर कोई बात करने से पीछे नहीं रहता हैं. मगर शायद वे डर और जीवन से संघर्ष की दास्ताँ से उनका कभी वास्ता ही नहीं हुआ होगा. 1886 से जम्मू कश्मीर प्रान्त में शुरू हुआ कश्मीरी पंडितों का नरसंहार अगले 20 सालों तक चलता रहा.

सदियों से जिस भूमि पर बसते आए, जहाँ उनका घर बार, सम्पति पुरखो की यादे सब कुछ था. एक खुशहाल जीवन था मगर कट्टर इस्लामिक आंधी ऐसी चली जिसमें प्रदेश की सरकार और राज्य का पूरा तंत्र भी शामिल हो गया. सामूहिक रूप से पंडितों पर धावा बोला गया.

स्त्रियों की अस्मत लूटी जा रही थी, तलवार बन्दूकों से गली गली में हिन्दुओं को चुन चुन कर मारा जा रहा था. उस समय न तो केंद्र सरकार को कोई फ़िक्र हुई न देश की जनता को.

न ही डेमोक्रेसी की पीलर मिडिया को, जो जिस हालत में अपनी जान बचा कर भागने में सफल हुआ उसने परिवार के साथ जम्मू कश्मीर को छोड़कर अन्य राज्यों में शरण ली.

कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पलायन की शुरुआत वर्ष 1947 में ही हो गई थी. जब जम्मू कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान में चला गया था. मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र से पंडितों को पहली बार अपनी धरती से निकाला गया, तब ये आकर जम्मू में बसे.

कौन है कश्मीरी पंडित

देश के जम्मू कश्मीर में तीसरी सदी ईसा पूर्व से सारस्वत ब्राह्मणों का एक समूह यहाँ रहता आया हैं. पंच गौड़ समूह के ये ब्राह्मण हैं कई मामलों में देश के अन्य ब्राह्मण समूहों जैसे द्रविड़ आदि से इनमें काफी विभिन्नताएं हैं. ये एकमात्र कश्मीरी हिन्दू जाति एवं राज्य के मूल निवासी थे.

आजकल यह स्पष्ट नहीं है कि जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की संख्या कितनी थी और वर्तमान में कितने पंडित वहां आबाद हैं. इस सम्बन्ध में अलग अलग आकंडे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक़ पलायन से पूर्व घाटी में करीब तीन लाख से छः लाख पंडित रहते थे. वर्ष 2016 में अब घाटी में रहने वाले पंडितों की संख्या एक से दो हजार के बीच मानी जाती हैं.

पूरे जम्मू कश्मीर प्रांत की जनसंख्या का महज ये पांच प्रतिशत थे. मगर इनमें पढ़े लिखे और समृद्ध लोगों की संख्या अधिक थी, राज्य की प्रशासनिक और अन्य विभागों के उच्च पदों पर पंडित थे. आपकी जानकारी के लिए बता दे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु भी इसी समुदाय के सम्बन्धित थे.

अब हम कश्मीरी पंडितों के निष्कासन काण्ड के इतिहास को समझने की कोशिश करेगे, जो भले ही इतिहास बन चूका हैं मगर उसका दर्द आज भी देश को हैं. इस नरसंहार कांड की पूरी जिम्मेदारी किसी पर डाली जाए तो वह है JKLF जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट.

यह पाकिस्तान की इंटेलीजेंस और आर्मी के इशारों पर बना. 1977 में इस कट्टर इस्लामिक संगठन की स्थापना अमानुल्लाह ख़ान और मक़बूल भट्ट ने की,

कुछ ही वर्षों बाद इंग्लैंड समेत कई देशों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया और 1982 में इसने पाक अधिकृत कश्मीर से अपनी गतिविधियाँ शुरू की.

वर्ष 1987 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट जेकेएलएफ़ ने भारतीय जम्मू & कश्मीर में अपनी शाखा खोली. यही से पंडितों के साथ अन्याय की शुरुआत हो गई जो अगले 20 वर्षों तक अनवरत चलती रही.

कश्मीरी पंडित कांड की पृष्ठभूमि व इतिहास (Background and history of Kashmiri Pandit incident In Hindi)

1987 के विधानसभा चुनाव

वर्ष 1984 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला की सरकार गिरा दी. नेशनल कांफ्रेंस के 12 विधायकों के साथ इन्होने कांग्रेस से हाथ मिला लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गये. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार को राजीव गांधी लीड कर रहे थे.

कहते है गांधी शाह से खुश नहीं थे वे किसी तरह शाह की सरकार गिराना चाहते थे. राजीव गांधी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया और बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा दिया.

केंद्र सरकार के इस निर्णय के बाद देशभर में कई दंगे हुए ऐसा ही एक दंगा अनंतनाग मे हुआ जहाँ मुस्लिम भीड़ ने अपना निशाना कश्मीरी पंडितों को बनाया.

केंद्र ने मौका पाकर राज्य में 7 मार्च, 1986 को राज्यपाल शासन लगा दिया और 1987 में विधानसभा चुनाव कराएं. इन चुनावों में फारुक अब्दूल्ला कांग्रेस के समर्थन के साथ राज्य के मुख्यमंत्री बने.

मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का आगमन

जम्मू कश्मीर के 1987 के चुनावों का जिक्र यहाँ इसलिए जरूरी है क्योंकि कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 में हुए नरसंहार के बड़े कारण में यह एक चुनाव भी था.

फारुख अब्दुल्ला और राजीव गांधी के हाथ मिलाने से जम्मू कश्मीर में जेकेएलएफ ने पहले से पैदा की भारत विरोधी भावनाओं को फिर से भड़काया गया.

दो बड़ी पार्टियों के हाथ मिलाने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथी गुट (जमात इस्लामी) आदि ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) गठबंधन बनाया. यकायक सारा परिदृश्य बदल गया इन चुनावों की चर्चा पुरे देश में होने लगी.

कश्मीर में MUF सीधे सीधे मुसलमानों को लामबंद कर रही थी. सैयद सलाहुद्दीन जैसा आतंकी श्रीनगर के अमीरा कदल से एमयूएफ का नामांकन करता हैं.

23 मार्च, 1987 को वोटिंग का दिन था प्रदेश में अस्सी प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ. उधर कई MUF के कार्यकर्ता गिरफ्तार भी किये गए.

कुल मिलाकर केंद्र सरकार इस कट्टरपंथी समूह को सत्ता से दूर रखना चाहती थी. नतीजा भी यही निकला NC ने 45 में से 40 सीट जीती कांग्रेस ने 31 में से 26 और MUF महज चार.

कट्टरपंथी नेताओं ने यही से लोगों को ठगे की बाते करनी शुरू कर दी. कट्टरपंथी ताकतों ने यहाँ से चुनाव और लोकतांत्रिक तरीकों से दूरी बना ली.

कश्मीरी पंडितों के निष्कासन की कहानी

साल 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने कश्मीर की आजादी के नाम पर कश्मीरी पंडितों के साथ उत्पीडन की शुरुआत कर दी. घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई.

भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी. कट्टरपंथी लोगों ने उन्ही व्यक्तियों को पहले मारना शुरू किया जो समान में सम्मानित थे जिससे सभी में डर जन्म ले ले.

4 जनवरी, 1990 का दर्दनाक दिन जब समाचार पत्रों में विज्ञापन आए कश्मीरी हिन्दुओं घर सम्पति और अपनी बेटियों और औरतों को छोड़कर चले जाओ या मरने के लिए तैयार रहो.

हर पंडित के घर के आगे इसी भाषा में नोटिस लगा दिए गये मस्जिदों के लाउडस्पीकर से हिन्दुओं को मारने और उनकी स्त्रियों की इज्जत लूटने के एलान होना शुरू हो गये.

राज्य में भय और दहशत का माहौल था न कानून न पुलिस न सरकार. आतंकवादियों के हाथों लोगों के कत्ल हो रहे थे लड़कियों और औरतों के सामूहिक बलात्कार के बाद मार दिया जाता. जिहादी इस्लामिक ताकतों ने कश्मीरी पंडितो को तीन विकल्प दिए, अपना धर्म बदल लो, पलायन करलो या मरो.

19 जनवरी 1990 को नवनियुक्त राज्यपाल जगमोहन घाटी में सेना बुलाते हैं इस एक कदम ने लाखों कश्मीरी पंडितों को जीवित कश्मीर छोड़ने का एक विकल्प दिया. सेना पंडितों के साथ हो रहे अन्याय को रोक तो नहीं पाई मगर उन्हें कश्मीर छोड़ने में ढाल की तरह मददगार साबित हुई.

कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार का इतिहास History of atrocities on Kashmiri Pandits In Hindi

घाटी में सेना के दाखिले के बाद जत्थों में लोगों ने घाटी को खाली करना शुरू कर दिया. कुछ ने जम्मू में शरण ली तो अधिकतर ने दिल्ली हरियाणा, पंजाब और देश के अन्य भागों में जाना उचित समझा.

पंडितों पर हो रहे हमलें वही नहीं थमे जहाँ भी कश्मीरी पंडित दिखता भीड़ में लोगों द्वारा उस पर हमला कर दिया जाता था. 1989-1990 के एक साल की अवधि में करीब 400 से 500 पंडितों को मार दिया गया.

1990 के बाद भी घाटी में जो कुछ पंडित बच कर रह गये थे उन पर निरंतर हमले होते रहे और जाने जाती रही. कुछ बड़े पंडितों पर 1990 बाद हुए नरसंहार ये थे.

  • डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को 15 पंडितों की हत्या
  •  संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर सात पंडितों की हत्या
  • वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 आतंकियो ने 4 परिवारों के 23 जनों की हत्या की
  • पठानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को एक परिवार के 27 लोगों की हत्या, जिसमें 11 बच्चें थे.
  • 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की हत्या
  • 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार में 36 सिखों की हत्या
  • 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी
  • 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार में 11 लोगों की हत्या हुई
  • 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर दो बार हमला 15 लोगों की मौत
  • 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों की हत्या जिनमें 13 स्त्रियाँ व एक बच्चा भी था.
  • 2003 नदिमार्ग नरसंहार में 24 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया.

कश्मीरी पंडितों के पलायन के समय किसकी सरकार थी (Whose government was there at the time of the exodus of Kashmiri Pandits?)

जब जम्मू कश्मीर में मृत्यु का यह तांडव चल रहा था इस समय प्रदेश में नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे केंद्र में वी पी सिंह प्रधानमंत्री थे. प्रदेश में हालात इस कद्र बिगड़ गये अथवा राज्याश्रय में बिगाड़ दिए गये कि बाद में राज्यपाल शासन लगाना पड़ा और घाटी में सेना बुलानी पड़ी.

कश्मीरी पंडितों का पलायन व आंकड़े (Exodus and statistics of Kashmiri Pandits)

सरकारी आंकड़ों के अनुसार घाटी में बसनें वाले करीब 60 परिवारों को घर छोड़कर जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा था. इस घटनाक्रम में करीब 4 लाख लोगों ने विस्थापन किया और पिछले 30 वर्षों से अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं.

९० के बाद आई कई सरकारों ने इनके पुनर्वास को लेकर राजनैतिक रोटियां तो सेकी मगर पंडितों के दर्द पर मरहम अभी तक किसी ने नहीं लगाया.

मोदी सरकार से भी कश्मीरी पंडितों को बड़ी उम्मीद हैं. धारा 370 और 35A के हटने के बाद पंडितों को उम्मीद है कि सरकार उन्हें फिर से अपने प्रदेश में बसाएगी.

दिग्विजय सिंह द्वारा संसद में साल 1990 और उसके बाद कश्मीरी पंडितों के पलायन के सवाल पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने इस पर जानकारी देते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर की सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार 44684 कश्मीरी विस्थापित परिवार ‘राहत और पुनर्वास आयुक्त (विस्थापित) जम्मू’ के कार्यालय में रजिस्टर्ड हैं मगर इनकी संख्या की बात करे तो यह 154712 व्यक्ति हैं.

हाल ही में कश्मीरी पंडितों पर हुए हमले Recent Attacks On Kashmiri pandits

साल 2021 के अक्टूबर माह में एक बार फिर कश्मीरी पंडितों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच भय और पलायन का माहौल बन रहा हैं. इस परिस्थिति की भूमिका में हाल ही में पंडितों पर कुछ कुछ जानलेवा हमले हैं. पिछले दो दिनों में घाटी से 150 से अधिक अल्पसंख्यक परिवारों ने घाटी छोड़कर जम्मू में शरण ली हैं.

सात अक्टूबर को एक गर्वनमेंट स्कूल के दो टीचर दीपक चंद और प्रधानाचार्या सतिन्द्र कौर की गोली मारकर हत्या कर दी थी, इस घटना से पूर्व श्रीनगर के विख्यात केमिस्ट माखनलाल बिंदु की भी गोली मारकर हत्या कर दी थी. इन घटनाओं को देखकर एक बार पुनः पंडितों में 90 के दौर के भय और आतंक की यादे ताजा हो रही हैं.

कश्मीरी पंडितों की नरसंहार पर बनी फिल्म The Kashmir Files

विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीर हिन्दू पंडितों के साथ 90 के दशक में हुए नरसंहार पर एक दर्दनाक कहानी को कई अनजाने तथ्यों के साथ द कश्मीर फाइल्स नाम से बनाई हैं.

फिल्म में पंडितों के साथ घटित सत्य घटनाओं और उस समय के हालातों को चित्रित करने का प्रयास किया हैं. देश और दुनियां भर से फिल्म को बेहद प्यार मिला और बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म छाई रही.

11 मार्च 2022 को रिलीज इस फिल्म में अनुपम खेर, पल्लवी जोशी एवं मिथुन चक्रवर्ती ने काम किया हैं अभिषेक अग्रवाल इसके निर्माता हैं.

फिल्म को बॉलीवुड के बायकाट और बड़े बड़े रियलिटी शो में प्रमोशन करने से भी रोका गया मगर भारतीय जनमानस ने पंडितों के दर्द की सच्ची दास्ताँ देखकर इसे भरपूर प्यार दिया और साल की सबसे हिट फिल्म भी बनाया हैं.

पिछले तीस वर्षों में कश्मीरी पंडितों को भले ही न्याय तो नहीं मिल पाया हो, मगर पहली बार दुनियां ने उनके दर्द को जाना हैं उनकी असली कहानी पहली बार उन लोगों ने भी जानी है जो कश्मीरी पंडित है तथा इस त्रासदी के बाद भारत या दुनियां के अन्य भागों में जन्में हैं.

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One comment

  1. PT. jvahar lal nehru kisi bhi shart me pandit nahi the, ve muslim smuday se tallukh rkhte the, history change krne se scchai nahi bdl jati

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