नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर निबंध | Essay On Moral Values For Students In Hindi

Essay On Moral Values For Students In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर निबंध बता रहे हैं.

आज का यह लेख कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए छोटा बड़ा हिंदी में 5,10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में इस निबंध को परीक्षा के लिहाज से याद कर सकते है.

नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर निबंध

नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर निबंध | Essay On Moral Values For Students In Hindi

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200 शब्द

जीवन को बेहतर तरीके से जीने के लिए शिक्षा एक सर्वोत्तम साधन हैं मनुष्य की क्षमताओं को विकसित करने वाली पद्धति शिक्षा ही हैं. यहाँ एक प्रश्न यह भी है कि शिक्षा कैसी हो,

उसका स्वरूप क्या हो? आज हमारे बच्चों को दी जाने स्कूली शिक्षा क्या व्यक्तित्व निर्माण की अहम प्रक्रिया मानी गई शिक्षा के मानदंडों को पूरा करती हैं.

एक आदर्श नागरिक के निर्माण के लिए जो शिक्षा दी जा रही है उसमें कौशल, रोजगार सृजन, अनुशासन और धर्म व नैतिकता को शामिल किया जाना ही चाहिए.

सत्यम शिवम सुन्दरम् के आदर्शों को शिक्षा में सम्मिलित कर बालक को सही गलत की पहचान करने का सामर्थ्य दिलाना शिक्षा का एक उद्देश्य होना ही चाहिए. गलत को गलत कहने और अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस पैदा करना शिक्षा का काम हैं.

पेशवर शिक्षा व्यक्ति को धन अथवा पद अर्जन में सहायता तो कर सकती है मगर चरित्र उत्थान एवं आध्यात्मिक विकास के लिए नैतिक शिक्षा को साधारण शिक्षा के साथ सम्मिलित कर देना चाहिए. अशांति एवं असंतोष के वातावरण में युवा मोह और भ्रम के बीच अपने उद्देश्यों को न भूलें, इसके लिए नैतिकता का पाठ जरूरी हैं.

नैतिक शिक्षा का महत्व पर निबंध 300 शब्दों में

प्रस्तावना- प्रत्येक राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक उन्नति वहां की शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है. हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद शिक्षा क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है.

फिर भी कमी यह है कि यहाँ नैतिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है. इसमें भारतीय युवा पीढ़ी संस्कारहीन और कोरी भौतिकवादी बन रही है.

नैतिक शिक्षा का स्वरूप- प्राचीन भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था के अंतर्गत चारित्रिक उत्कर्ष के लिए नैतिक शिक्षा पर बल दिया जाता था. लेकिन भारत सैकड़ों वर्षों तक पराधीन रहा, इसकी वर्णाश्रम व्यवस्था विछिन्न हो गई और शिक्षा का स्वरूप चरित्र निर्माण न होकर केवल धनोपार्जन रह गया.

इस कारण यहाँ नैतिक शिक्षा का हास हुआ. इस स्थिति की ओर ध्यान देकर अब प्रारम्भिक माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नैतिक शिक्षा का समावेश किया जाने लगा हैं.

नैतिक शिक्षा का समायोजन– भारतीय संस्कृति के उपासक लोगों ने वर्तमान शिक्षा पद्धति के गुण दोषों का चिंतन कर नैतिक शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया.

फलस्वरूप विद्यार्थियों के लिए नैतिक शिक्षा स्तरानुसार समायोजन किया जाने लगा हैं. क्योंकि विद्यार्थी जीवन आचरण की पाठशाला हैं.

नैतिक शिक्षा की उपयोगिता– नैतिक शिक्षा की उपयोगिता व्यक्ति, समाज और राष्ट्र इन सभी के लिए हैं. नैतिक शिक्षा के द्वारा ही विद्यार्थी अपने चरित्र एवं सुंदर व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं.

नैतिक शिक्षा से मंडित विद्यार्थी का भविष्य उज्ज्वल गरिमामय बनता है तथा देश के भावी नागरिक होने से उनसे समस्त राष्ट्र को नैतिक आचरण का लाभ मिलता हैं.

उपसंहार– नैतिक शिक्षा मानव व्यक्तित्व के उत्कर्ष का, संस्कारित जीवन तथा समस्त समाज हित का प्रमुख साधन है. इससे भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, प्रमाद, लोलुपता, छल कपट तथा असहिष्णुता आदि दोषों का निवारण होता है.

मानवतावादी चेतना का विकास भी इसी से संभव हैं. अतएवं विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए.

500 शब्दों में नैतिक शिक्षा पर निबंध

प्रत्येक राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक उन्नति वहां की शिक्षा पद्दति पर निर्भर करती है. हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है.

और वर्तमान में कला, वाणिज्य, विज्ञान, चिकित्सा आदि अनेक संकायों में विभिन्न सवर्गों में शिक्षा का गुणात्मक एवं संख्यात्मक प्रचार हो रहा है.

सूचना प्रद्योगिकी के क्षेत्र या कंप्यूटर शिक्षा में भारत विश्व का अग्रणी देश बन गया है. फिर भी एक कमी यह है कि यहाँ नैतिक शिक्षा पर उतना ध्यान नही दिया जाता है. इससे भारतीय पीढ़ी संस्कारहीन और कोरी भौतिकवादी बन रही है.

नैतिक शिक्षा का महत्व (Importance of moral education)

प्राचीन भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था के अंतर्गत चारित्रिक उत्कर्ष के लिए नैतिक शिक्षा पर बल दिया जाता था. उस समय विद्यार्थियों में नैतिक आदर्शों को अपनाने की होड़ लगी रहती थी. इस कारण वे संस्कार सम्पन्न होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते थे. लेकिन भारत सैकड़ो वर्षो तक पराधीन रहा था.

इसकी वर्णाश्रम व्यवस्था विछिन्न हो गई और शिक्षा का स्वरूप चरित्र निर्माण न होकर अर्थोपार्जन हो गया. इस कारण यहाँ नैतिक शिक्षा का हास्य हुआ है.

ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठां , परोपकार, समाज सेवा, उदारता, सद्भावना, मानवीय संवेदना तथा उदात आचरण आदि का अभाव इसी नैतिक शिक्षा के हास का कारण माना जा सकता है. इस स्थति की ओर ध्यान देकर अब प्रारम्भिक माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नैतिक शिक्षा का समावेश किया जाने लगा है.

नैतिक शिक्षा का समायोजन (Adjusting moral education)

भारतीय संस्कृति के उपासक लोगों ने वर्तमान शिक्षा पद्दति के दोषों गुणों के बारे में चिन्तन कर नैतिक शिक्षा के प्रचार का समर्थन किया है. फलस्वरूप विद्यार्थियों के लिए नैतिक शिक्षा का स्तरानुसार समायोजन किया जाने लगा है.

प्राचीन निति शिक्षा से सम्बन्धित आख्यानों, कथाओं एवं ऐतिहासिक महापुरुषों के चरित्र को आधार मानकर नैतिक शिक्षा की पाठ्य सामग्री तैयार की गई है.

वस्तुतः विद्यार्थी जीवन आचरण की पाठशाला है. सभ्य संस्कार सम्पन्न नागरिक का निर्माण विद्यार्थी जीवन में ही होता है. विद्यार्थी को जैसी शिक्षा दी जायेगी, जैसे संस्कार उन्हें दिए जाएगे, आगे चलकर वह वैसा ही नागरिक बनेगा. इस बात का ध्यान रखकर नैतिक शिक्षा का समायोजन किया गया है.

नैतिक शिक्षा की उपयोगिता (Usefulness of moral education)

नैतिक शिक्षा की उपयोगिता व्यक्ति, समाज और राष्ट्र इन सभी के लिए महत्वपूर्ण है. विद्यार्थी जीवन में तो नैतिक शिक्षा का अपना विशेष महत्व और उपयोगिता है.

नैतिक शिक्षा के द्वारा ही विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व एवं सुंदर चरित्र का निर्माण कर सकते है. नैतिक शिक्षा से मंडित विद्यार्थी का अपना भविष्य उज्जवल एवं गरिमामय बनता है. तथा देश के भावी नागरिक होने से उनसे समस्त राष्ट्र को नैतिक आचरण का लाभ मिलता है.

देश में उच्च आदर्शों, श्रेष्ट परम्पराओं एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना तभी की जा सकती है. अतएवं प्रशस्य जीवन निर्माण के लिए विद्यार्थी जीवन में नैतिक शिक्षा की विशेष उपयोगिता है.

नैतिक शिक्षा मानव व्यक्तित्व के उत्कर्ष का, संस्करारित जीवन तथा समाज हित का प्रमुख साधन है. इससे भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, प्रमाद, लोलुपता, छल कपट तथा असहिष्णुता आदि दोषों का निवारण होता है.

मानवतावादी चेतना का विकास भी इसी से ही संभव है. जीवन का विकास उद्दात एवं उच्च आदर्शों से होता रहे, इसके लिए नैतिक शिक्षा का प्रचार अपेक्षित है. अतएवं विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए.

One comment

  1. इस आधुनिक समाज के बच्चो को नैतिक शिक्षा का महत्व जानना बहुत जरुरी है, हमे खुशी है की आप ने इसपर लेख लिखा, धन्यवाद

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