मिर्जा साहिबा की प्रेम कहानी Love Story Of Mirza Sahiba In Hindi Language: खुदा की रहमत मोहब्बत के दुश्मन हजार है! यह सिर्फ एक पंक्ति नहीं बल्कि दुनिया की हकीकत है।
मोहब्बत करने वालों को किस कदर यह दुनिया तड़पाती है इसके अनेक उदाहरण इतिहास में दर्ज है लेकिन फिर भी मोहब्बत हर किसी को अपने काबू में कर ही लेती है क्योंकि इसकी शक्ति से बच पाना नामुमकिन है।
मिर्जा साहिबा की प्रेम कहानी Story Of Mirza Sahiba In Hindi

कुछ लोग मोहब्बत को खुदा की रहमत, जीने की वजह, दिल धड़कने का कारण कहते हैं तो वहीं कुछ लोग मोहब्बत को नापाक, बेकार और गुनाह कहते हैं।
लोगों द्वारा बनाई गई इन विचारधाराओं के कारण कई प्रेम कहानियां इस तरह से मौत के हाथों खत्म हो गई कि जिन्हें सुनते ही लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
लेकिन आज भी लोग मोहब्बत को गुनाह ही मानते हैं। मोहब्बत दिल का सुकून है तो दिल का दर्द भी मोहब्बत ही है। मोहब्बत की कहानियां सुनना जितना आसान है मोहब्बत करना उतना ही मुश्किल! इसीलिए तो कहते हैं ना – “ मोहब्बत एक आग का दरिया है और डूब के जाना है”
लेकिन आशिकों को मोहब्बत के अलावा कुछ सूझता ही नहीं। अपनी मोहब्बत के लिए वे दुनिया से भी लड़ जाते हैं और कहते हैं इश्क पर जोर नहीं साहब! आज हम आपको पंजाब के गलियों में पनपा ऐसे प्रेम कहानी के बारे में बताने वाले हैं जिसे लोगों ने अपने झूठी शान के लिए खत्म कर दिया।
लेकिन यह कहानी आज भी पंजाब के गलियों में लोक कथाओं के रूप में गूंजती हैं। यह कहानी मिर्जा और साहिबा की है। इस कहानी के ऊपर बॉलीवुड में “मिर्जा” नामक फिल्म भी बनाई जा चुकी है।
यह कहानी उस वक्त की है जब पंजाब दो भागों में बंटा हुआ था। पंजाब के एक छोटे से गांव खीवा में एक औरत ने एक बच्चे को जन्म दिया लेकिन उस बच्चे के जन्म के साथ ही उसकी मां की मृत्यु हो गई।
संयोग से उसी अस्पताल में एक औरत ने भी एक छोटी सी बच्ची को जन्म दिया।
मां के मर जाने के कारण वह बच्चा बहुत रो रहा था और इस छोटे से बच्चे की यह हालत उस मां से देखी नहीं गई जिसकी अभी बेटी हुई थी।
उस औरत ने उस बच्चे को अपना दूध पिलाया और उसकी भूख को शांत किया। उस दिन जन्मे यह दोनों बच्चे दूध के रिश्ते से भाई-बहन बन गए।
लड़के का नाम खेवा खान रखा गया और लड़की का नाम फतेह बीबी रखा गया। दोनों साथ ही साथ पढ़ाई किया करते थे। देखते ही देखते दोनों बड़े हो गए फतेह बीबी की शादी करा दी गई और उसके कुछ समय बाद खेवा खान की भी शादी एक सुंदर सी लड़की से हो गई।
कुछ समय बाद दोनों के घर बच्चों ने जन्म लिया। फतेह बीबी के यहां बेटा पैदा हुआ और खेवा खान के घर एक प्यारी सी बेटी हुई।
लड़के का नाम मिर्जा था और लड़की का नाम साहिबा।
फतेह बीबी अपने बेटे मिर्जा को अपने भाई के घर पढ़ने के लिए भेज दिया करती थी। दोनों बचपन से ही एक साथ पढ़ते थे। साथ में पढ़ते पढ़ते मिर्जा और साहिबा की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई।
और यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई यह उन्हें भी पता नहीं चला। पढ़ाई करते करते दोनों ने एक साथ प्यार का ढाई अक्षर पढ़ना शुरू कर दिया था।।
लेकिन मौलवी साहब को इन दोनों की नजरों में दिखाई देने वाले प्यार का कोई एहसास नहीं था।
कब यह दोनों एक दूसरे के प्यार में इस कदर डूब चुके थे इसकी भनक किसी को भी नहीं पड़ी। प्यार में पड़े मिर्जा और साहिबा को ना तो दिन दिखाई देता था और ना ही रात।
दोनों बस सारा दिन एक दूसरे के बारे में सोचते रहते थे और ऐसा लगता था कि यह लोग मोहब्बत नहीं बल्कि एक दूसरे की इबादत कर रहे हैं।
यूं तो देखने में बस दो शरीर थे, लेकिन इनकी आत्मा तो कब की एक हो चुकी थी।
लेकिन कहते हैं ना प्यार छुपाए नहीं छुपता! मौलवी साहब को भी इन दोनों के बीच के प्यार का एहसास हो गया और यह बात कब गली से होती हुई मोहल्ले और मस्जिदों में फैल गई। इसका इल्म किसी को भी नहीं था।
दुनियादारी की बातों से साहिबा को बचाने के लिए मिर्जा ने गांव छोड़ दिया और दूर जाकर रहने लगा। मिर्जा की याद में साहिबा का हाल बहुत ही बुरा था लेकिन वह भी जैसे तैसे जिंदगी काट रही थी।
मिर्जा एक बहुत अच्छा तीरंदास था। ऐसा माना जाता है कि उसकि कमान से निकला तीर कभी वापस नहीं आता और हमेशा निशाने को भेद देता। मिर्जा अपने तीर को किसी भी दिशा में चला सकता था वह हमेशा अपने साथ 300 तीर लेकर चलता था।
अगर मिर्जा एक कुशल योद्धा था तो साहिबा भी बला की खूबसूरत थी उसकी खूबसूरती को देखकर अच्छे-अच्छे उसके दीवाने हो जाते थे। उसकी आंखों को देखकर लोगों अक्सर अक्सर डूब जाया करते।
जैसे ही साहिबा कुछ बड़ी हुई वैसे ही उसका निकाह तय कर दिया गया। साहिबा का निकाह ताहिर खान के साथ पक्का कर दिया गया था। लेकिन साहिबा तो अपने दिल, दिमाग, आत्मा हर चीज से सिर्फ मिर्जा की हो चुकी थी।
इसीलिए साहिबा ने मिर्जा को संदेश भेजा और कहा कि उसके परिवार वालों ने उसकी शादी तय कर दी है! तुम आकर मुझे यहां से ले जाओ।
साहिबा की बात सुनकर मिर्जा उसकी शादी के दिन साहिबा को लेने के लिए उसके घर गया। मिर्जा ने अकेले साहिबा को अपने घोड़े पर बैठाया और साहिबा के भाइयों और उसके होने वाले पति से लड़ते हुए वहां से निकल गया।
साहिबा के भाइयों और उसके होने वाले पति उन दोनों को मारने के लिए निकल चुके थे क्योंकि उन दोनों ने उन्हें शर्मिंदा किया था। इन लोगों से बचते हुए साहिबा और मिर्जा काफी दूर निकल चुके थे।
काफी दूर तक भागने के बाद मिर्जा और साहिबा ने दूर एक पहाड़ी के पास आराम करने का विचार किया। वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए। मिर्जा घुड़सवारी करते हुए काफी थक गया था जिसके वजह से उसे नींद आ गई।
मिर्जा को कहीं ना कहीं अपनी तीरंदासी पर बहुत नाज था। क्योंकि उसे पता था कि उसके तीर से कोई नहीं बच सकता है। इसीलिए वह मैदान छोड़कर भागना भी नहीं चाहता था।
लेकिन साहिबा यह नहीं चाहती थी। क्योंकि उसे पता था कि अगर मिर्जा उसके भाइयों से लड़ेगा तो खून की नदियां बह जाएगी।
इसीलिए साहिबा ने मिर्जा के तीन सौ तीरो को तोड़ कर फेंक दिया। साहिबा ने सोचा कि इसके बाद मिर्जा को उसके साथ भागना ही होगा। जिससे किसी भी तरह का खून खराबा नहीं होगा।
लेकिन कुछ समय बाद ही साहिबा के भाई और ताहिर खान उस जगह पर पहुंच गए। वहां पर उन्होंने तीरों की बारिश कर दी। सबसे पहला तीर साहिबा को जाकर लगा और उसकी चीख से मिर्जा की नींद भी खुल गई।
जब मिर्जा की नजर साहिबा पर पड़ी, तो उसके आंखों में देखते ही उसे सारी बातें समझ आ गई। मिर्जा ने साहिबा को कुछ नहीं कहा। एक के बाद एक तीर साहिबा को लग रहे थे। इस तरह साहिबा को कुछ 40 से 50 दिन लग गए उसके बाद उसका शरीर पूरा छलनी हो गया।
तब मिर्जा ने साहिबा को कहा कि तुमने तो वादा किया था हम जिएंगे भी साथ और मरेंगे भी साथ। लेकिन अब तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो। यह बात सुनते ही साहिबा बीच से हट गई।
इसके बाद एक तीर सीधे जाकर मिर्जा को लगा। इस तरह दोनों मोहब्बत करने वाले मौत की गोद में सो गए। और इन दोनों की प्रेम कहानी हमेशा के लिए अमर हो गई।
“सच्चा प्यार ना तो जमाने से डरता है और ना ही इंसानों से। इसीलिए तो मोहब्बत करने वालो को बागी कहते है” उम्मीद है कि आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी। इस तरह की बेहतरीन कहानियां पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे।
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