तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh fort Ajmer History In Hindi

Taragarh fort Ajmer History– तारागढ़ किला अजमेर में स्थित हैं. जो राजस्थान के अन्य किलों की तरह अरावली पर्वतमाला की पहाड़ी पर बना हुआ हैं.

इस दुर्ग को राजस्थान का जिब्राल्टर अथवा राजस्थान की कुंजी भी कहा जाया हैं. अजमेर की तारागढ़ पहाड़ी पर तक़रीबन ७०० फीट की ऊँचाई पर बना यह दुर्ग अजमेर के इतिहास का साक्षी रहा हैं.

तारागढ़ किला – Taragarh fort का निर्माण चौहान सम्राट अजयपाल ने ग्याहरवीं सदी में करवाया था. विदेशी आक्रान्ताओं के हमलें से बचने के लिए ढाई दिन के झौपड़े के पास ही तारागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया. यह किला अजमेरू दुर्ग के नाम से जाना जाता था. मुगलों के काल में इस किले का बड़ा सामरिक महत्व था.

तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh fort Ajmer History In Hindi

Taragarh fort Ajmer History In Hindi

1890 फीट की ऊँचाई पर बने तारागढ़ दुर्ग को देश के सबसे ऊँचे किलों में गिना जाता हैं. एक समय एक शक्ति का केंद्र व अजमेर की आन बान रहा तारागढ़ अब जर्जर और खंडहर की अवस्था में हैं.

तारागढ़ में एक मुस्लिम दरगाह और 7 जल के झालरे बने हुए हैं. मुगलों ने तारागढ़ को अपना निवास बनाया तो जब अंग्रेज आए तो उन्होंने इसे अस्पताल का रूप दे दिया. ब्रोटन के अनुसार बिजोलिया शिलालेख में इस दुर्ग को अजेय बताया गया हैं. यानी कोई भी आक्रान्ता इसे पाने में सफल नहीं रहा हैं.

इस दुर्ग में राज्य का संगीत खूब फला फूला इस कारण इसे गढबीरली किले की उपाधि दी गई. इसे गढबीरली कहने की वजह यह है कि दुर्ग  बीरली पहाड़ी पर बना हुआ है इस कारण इसे गढबीरली कहा गया हैं.

बताते है कि यहाँ पर एक मीठे नीम का पेड़ भी है जिसकी मन्नत करने तथा उसके फल खाने से सन्तान कामना पूर्ण हो जाती हैं. तारागढ़ का इतिहास क्या था चलिए आज जानते हैं.

तारागढ़ दुर्ग का इतिहास Taragarh fort History In Hindi

बांको है गढ़ बीठ्ली, बांको भड बीस्ल्ल
खाण खेचतो खेत मझ, दलमलतो अरिदल्ल

गढ़बीठली अजयमेरू और तारागढ़ के नाम से विख्यात किला अरावली पर्वतमाला के उतुंग शिखर पर निर्मित हैं. कर्नल टॉड के अनुसार अजमेर नगर के संस्थापक अजयराज ने इस किले का निर्माण करवाया.

डॉ गोपीनाथ शर्मा का मानना है कि राणा संगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज ने इस किले के कुछ भागों का निर्माण कराया एयर अपनी पत्नी तारा के नाम पर किले का नाम तारागढ़ रखा. गढ़बीठली के बारे में कहा जाता है कि बीठली उस पहाड़ी का नाम हैं जिस पर दुर्ग बना हुआ हैं.

गढ़ बीठली नाम के सम्बन्ध में एक अन्य मत यह भी है कि मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में विट्ठलदास गौड़ यहाँ का दुर्गाध्य्क्ष जिसने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया उसी के नाम पर इस किले का नाम गढ़ बीठली पड़ा.

यह किला समुद्र तल से 2855 फीट ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ है और 80 एकड़ की परिधि में फैला हुआ हैं. पर्वत शिखरों के साथ मिली हुई ऊँची प्राचीर, सुद्रढ़ और विशालकाय बुर्जें तथा सघन वन इसे सुरक्षा प्रदान करते हैं. हरविलास शारदा ने इसे भारत का प्राचीनतम दुर्ग माना हैं.

तारागढ़ किले की जानकारी History Of Taragarh fort Ajmer

राजपूताना के मध्य में स्थित होने के कारण इस दुर्ग का विशेष सामरिक महत्व रहा हैं. इसलिए महमूद गजनवी से लेकर अंग्रेजों के नियंत्रण में आने तक इसे अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा. हरविलास शारदा के अनुसार राजस्थान के समस्त किलो में सवार्धिक आक्रमण तारागढ़ पर हुए हैं.

राव मालदेव ने तारागढ़ का जीर्णोद्धार करवाया तथा किले में पानी पहुचाने के लिए रहट का निर्माण भी करवाया. मालदेव की पत्नी रूठी रानी उमादे ने तारागढ़ को अपना निवास बनाया.

गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैटिक ने 1832 ई में सम्भावित उपद्रव की आशंका से इस किले की प्राचीर और अन्य भाग तुड़वाकर इस किले का सामरिक महत्व समाप्त कर दिया था.

तारागढ़ की प्राचीर में 14 विशाल बुर्जे घुघट, गूग्ड़ी, फूटी, नक्कारची, श्रृंगार चंवरी, आर पार का अत्ता, जानू नायक, पीपली, इब्राहिम शहीद, दोराई, बांदरा, इमली, खिड़की और फतेह बुर्ज हैं.

नाना साहब का झालरा, गोल झालरा, इब्राहिम का झालरा, बड़ा झालरा आदि किले के भीतर जलाशयों के नाम हैं. तारागढ़ में एक मुस्लिम संत मीरां साहेब की दरगाह स्थित हैं.

बिशप हैबर ने इस किले के बारे में लिखा है यदि यूरोपीय तकनीक से इसका जीर्णोद्धार करवाया जाए तो यह दूसरा जिब्राल्टर बन सकता हैं. इसे राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता हैं.

तारागढ़ किले में देखने योग्य स्थल – ajmer durg Ka Itihas History Hindi Main

राजस्थान के पर्यटन स्थलों में तारागढ़ किला भी शामिल होता हैं. यदि आपने राजस्थान घूमने का मन बनाया है तो इस किले की सैर जरुर कीजिए,

इस ऐतिहासिक दुर्ग में आपकों कई प्राचीन धरोहर की वस्तुएं एवं महल देखने को मिलेगे. यही वजह है कि अजमेर आने वाला प्रत्येक पर्यटक इस किले के दर्शन अवश्य करता हैं.

यहाँ के मुख्य महल छत्रमहल, फुल महल, रतन महल, बादल महल, अनिरूद्ध महल हैं. यहाँ एक बड़ी तोप भी रखी गई है जिसका नाम गर्भ गुंजन हैं.

एक समय में यह इतनी विस्फोटक हुआ करती थी कि इसे हर कोई गोला दागने से कतराता था. किले में कई सुंदर तालाब एवं जलाशय के अतिरिक्त यहाँ एक दरगाह भी हैं.

दुर्ग में तीन छोटे बड़े जल तालाब हैं, जिनके जल का उपयोग विपदा के समय आम निवासियों द्वारा किया जाता था. इनके बारे में ख़ास बात यह है कि ये तालाब कभी सूखते नहीं हैं.

इसकी वजह इन्हें बनाने के लिए उपयोग ली गई तकनीक हैं. इनका आधार चट्टानों से निर्मित है इस कारण साल भर तक पीने योग्य जल इन तालाबों में बना रहता हैं.

यहाँ पर भीम बुर्ज में पर्यटकों के लिए गर्भ गुजंन तोप को रखा गया हैं. इसके धमाके से उदर में गूंज हो उठती थी इसी वजह से इसका यह नाम रखा गया था.

यहाँ 84 खम्भों की छतरी भी दर्शनीय स्थलों में शामिल है जो तीन मंजिल में 17 वीं सदी की बनी हुई ऐतिहासिक इमारत है इसका निर्माण धाबाई देवा ने करवाया था.

तारागढ़ किले की वास्तुकला | Architecture of Taragarh Fort in hindi

फूटा दरवाजा, लक्ष्मी पोल और गगुड़ी की फाटक इन तीन प्रवेश द्वारों की मदद से तारागढ़ दुर्ग में प्रवेश किया जा सकता हैं. दुर्भाग्य से आज ये खंडहर अवस्था में है.

किला पर्वत की गोद में बनाया गया है जहाँ से छोटी छोटी सुरंगे पर्वत चोटी तक जाती है, इनकी मदद से दुश्मन सेना पर नजर रखी जाती थी.

किले की प्राचीर की मजबूती भी आज भी हैरत में डालने वाली हैं. दुर्ग में 16 वीं सदी का बना भीम बुर्ज भी दर्शनीय हैं. दुर्ग में कांच की खिडकियों व भित्ति चित्रों की सजावट बेहद आकर्षक रही हैं. एशिया के सबसे बेहतरीन पर्वतीय दुर्गों में इसकी गिनती की जाती हैं. दुर्ग के रानी महल से सूर्यास्त का बेहतरीन नजारा दिखता हैं

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