Hiralal Shastri Biography In Hindi | हीरालाल शास्त्री का जीवन परिचय: भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, गरीब हितेषी एवं राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री थे.
आजादी के बाद राजस्थान गठन के समय इन्हें राजस्थान के लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में दो वर्ष सेवा करने का अवसर मिला, इनका सपना था कि वे दिन दुखियों व गरीबो की सेवा करना चाहते थे.
इन्ही के प्रयास से रतन शास्त्री ने वनस्थली विद्यापीठ संस्था को खोला, जो आज बालिका शिक्षा का राष्ट्रीय केंद्र बन चुका हैं.
हीरालाल शास्त्री का जीवन परिचय Hiralal Shastri Biography In Hindi
मूल नाम | पंडित हीरालाल जोशी |
जन्म | 24 नवम्बर 1899 |
मृत्यु | 28 दिसम्बर 1974 |
पत्नी | रत्न शास्त्री |
बेटी | शांता शास्त्री |
पेशा | राजनीति |
पहचान | स्वतंत्रता सेनानी, अध्यापक, राजस्थान के पहले सीएम |
मुख्यमंत्री काल | 1948-1951 |
रचना | प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र |
शिक्षा | जयपुर के महाराज कालेज से बी.ए. |
24 नवम्बर 1899 को जयपुर के जोबनेर कस्बे में हीरालाल शास्त्री का जन्म हुआ. बालपन में ही माताजी का देहावसान हो गया, शास्त्री जी की स्कूली शिक्षा जोबनेर में ही पूरी हुई. वर्ष 1920 में इन्होने साहित्य शास्त्री की डिग्री हासिल की और हीरालाल जोशी से शास्त्री बन गये.
वर्ष 1921 में इन्होने जयपुर के ख्यातिप्राप्त महाराजा कॉलेज से न केवल बीए डिग्री हासिल की बल्कि कॉलेज टॉप भी किया. चूँकि ये पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे जिसके चलते इसी साल ये राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा में चुने गये.
कड़ी मेहनत और अपनी कार्यकुशलता के कारण इन्होने बड़ी तेजी पदोन्नति अर्जित की और गृह व विदेश विभाग के सचिव पद तक पहुचे.
मगर 1927 में मात्र छः वर्ष की सेवा के बाद प्रशासन से इस्तीफा देकर स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदे और कांग्रेस के साथ राजनैतिक करियर की शुरुआत की.
शास्त्रीजी ने जयपुर राज्य की निवाई तहसील के वनस्थली ग्राम में जीवन कुटीर नामक संस्था की स्थापना की. जिसके माध्यम से वस्त्र स्वावलम्बन की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया.
इसके बाद वे जयपुर प्रजामंडल से जुड़े रहे. 1942 ई में कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में भाग लेकर लौटे. मगर भारत छोड़ों आंदोलन शुरू करने या न करने को लेकर असमंजस की स्थिति में रहे.
पंडित हीरालाल शास्त्री ने जयपुर प्रजामंडल के साथ अपनी सियासत की शुरुआत की, उस समय प्रजामंडल के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति जमनालाल बजाज थे जो गांधीजी के बेहद करीबी थे उनके आश्रय में शास्त्री जी का भी कद तेजी से बढ़ा मगर बजाज की मृत्यु के बाद शास्त्री जी जयपुर प्रजामंडल के प्रधान बन गये.
जब 25 मार्च 1948 को जब संयुक्त राजस्थान का गठन हुआ तो मेवाड़, मारवाड़ जैसी प्रभावशाली रियासतों के प्रधानों के बीच एक नेता को ही मुख्यमंत्री बनना था.
इस सूची में जयनारायण व्यास, माणिक्यलाल वर्मा जैसे दिग्गज नेता भी थे, मगर सरदार पटेल से करीबी के चलते आखिर उन्हें ही राजस्थान की पहली निर्वाचित प्रधान हीरालाल शास्त्री ही बने.
इन्होंने मिर्जा इस्माइल से एक जेंटलमैन्स एग्रीमेंट कर आंदोलन शुरु नहीं किया, जिससे इनकी काफी आलोचना हुई और प्रजामंडल दो फाड़ हो गया. ये अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के प्रधानमंत्री और बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने.
राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री के रूप में (first Chief Minister of Rajasthan)
जब 30 मार्च, 1949 को जब अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान में विलय करने के पश्चात एक बार फिर मुख्यमंत्री के नाम का प्रश्न सामने था.
जयनारायण व्यास, माणिक्यलाल वर्मा और टीकाराम पालीवाल जैसे बड़े नाम राजस्थान की राजनीति में थे, मगर सरकार पटेल की कृपा से पुनः मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री ही बनाएं गये.
30 मार्च, 1949 से 5 जनवरी, 1951 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री रहे, इन्हें आजादी के बाद पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ. यह जयपुर रियासत के प्रतिनिधि थे. तथा इन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया था.
1950 के आस पास जब सरदार पटेल का देहांत हुआ तो शास्त्री के राजनैतिक संरक्षक चले गये तो उन्हें भविष्य की राजनीति को छोड़ने का इरादा कर लिया था और 3 जनवरी, 1951 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
शास्त्री जी के इस्तीफे के बाद व्यास-वर्मा कैंप फिर से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में आगे आए, उस समय पंडित नेहरु ने शास्त्री जी को अपने पास दिल्ली बुलाया और केंद्र की राजनीति का प्रस्ताव दिया.
दूसरी लोकसभा में ये सवाई माधोपुर से सांसद बने मगर बाद में स्वयं को शिक्षा और समाज सेवा के साथ जोड़ दिया. 28 दिसंबर, 1974 को वनस्थली में इनका देहावसान हो गया.
वनस्थली विद्यापीठ
राजनीति छोड़ने के बाद हीरालाल शास्त्री जी अपनी पत्नी रतन शास्त्री के साथ जयपुर से 75 किमी दूर निवाई के पास वनस्थली नाम गाँव में आए. उनके साथ अपनी बेटी शांता भी थी.
एक रोज यही 12 वर्षीय शांता बीमार हुई और उसकी मृत्यु हो गई. बेटी की मृत्यु के उपरान्त उन्होंने लड़कियों की स्कूल आरम्भ की, मात्र छ बेटियों को पढ़ाने के साथ शुरू हुई वनस्थली विद्यापीठ आज देश की सबसे बड़ी बालिका विश्वविद्यालय का रूप ले चुकी हैं.
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